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अनेकान्त
[वर्ष ४
परिस्थितियों में, यह दिखानेके लिये कि केशववर्णी संस्कृत तत्र श्रीशारदागच्छे बलात्कारगणो न्वयः। जी० प्रदीपिकाका कर्ता है, कधित प्रमाण बाधित ठहरता है कुन्दकुन्दमुनीन्द्रस्य नन्यादाचन्द्रतारकम् ॥११॥
और अभी तक यह कहनेके लिये कोई भी प्रमाण नहीं है तत्र श्रीमजिनधर्माम्बुधिवर्धन - पूर्णचन्द्रायमानश्रीज्ञानकि यह जी० प्रदीपिका चामुण्डरायकी वृत्ति का अनुसरण भूषणभट्टारशिष्येण सौगतसांख्यकणादभिवक्षपादप्रभाकराकरती है।
अब हमें यह देखना है कि संस्कृत जी. प्रदीपिकाका दिपरवादिगजगण्डभेरुण्ड प्रभाचन्द्रभट्टारकदत्ताचार्यपदेन कर्ता कौन है और वह कौनसी कर्णाटकवृत्तिका अनुसरण
विद्यविद्यापरमेश्वरमुनिचन्द्राचार मुखातकर्णाटदेशाधिनायप्राकरता है। मैं दो प्रशस्तियोंके प्रसंगोचित अंशोंको नीचे ज्यसाम्राज्यलपमानवासजनात्तममाल्लभूपालप्रयत्नाद अ
ज्यसाम्राज्यलक्ष्मीनिवासजनोत्तममल्लिभूपालप्रयत्नाद अधीतउद्धत करता है. जिनमेंसे एक पद्यमें और दूसरी कुछ गद्यमें सिद्धान्तन वागलालाविाहताहाहाहगाजरदशाचित्रकूटाजनदासऔर कुछ पद्यमें हैं। ये दोनों प्रशस्तियां गो०सारके कलकत्ता
साहनिर्मापितपार्श्वप्रभुप्रासादाधिष्ठितनामुना मेमिचन्द्रणाल्पसंस्करण के अन्तमें ( पृष्ठ २०१७-८ ) मुद्रित हुई हैं।
मेधसाऽपि भव्यपुण्डरीकोपकृतीहानुरोधेन सकल ज्ञातिशिरः (१) यत्र रस्नैखिभिब्ध्वान्न्यं पूज्यं नरामरैः ।
शेखरायमाणखण्डेलवालकुलतिलकसाधुवंशावतंसजिनधीनिर्वान्ति मूलसंघोऽयं नन्यदाचन्द्र तारकम् ॥४॥ रणधुरीणसाहसांगसाहसहसाविहितार्थनाधीनेन विशदत्रेतत्र श्रीशारदागच्छे बलात्करगणोऽन्वयः ।
विधविधास्पदविशालकीर्तिसहायादिय यथाकण टवृत्ति व्यरचि । कुन्दकुन्दमुनीन्द्रस्य नन्याम्नायोऽपि नन्दतु ॥२॥
यावच्छ जिनधर्मश्चन्द्रादित्यौ च विष्टपं सिद्धाः । यो गुणैर्गणभदगीतो भट्टारकशिरोमणिः ।
तावमन्दतु भव्यः प्रपञ्चमानास्वियं वृत्तिः ॥ भक्त्या नमामि तं भूयो गुरुं श्रीज्ञानभूषणम् ॥६॥
निन्थाचार्य वयण विद्यचक्रवर्तिना। कर्णाटप्रायदेशेशमल्लिभूपालभक्तितः ।
संशोध्याभयचन्द्रणालेखि प्रथमपुस्तकः ॥ सिद्धान्तः पाठितो येन मुनिचन्द्रं नमामि तं ॥७॥
इत्यभयनन्दिनामाकिंतायाम् । योऽभ्यर्थ्य धर्मवृद्धयर्थ मा सूरिपदं ददौ। भट्टारकशिरोरत्नं प्रभेन्दुः स नमस्यते ॥८॥
इन दोनों प्रशस्तियोंपर से वृत्तमात्रका संक्षेपमें संग्रह त्रिविद्यविद्याविख्यातविशालकीर्तसूरिणा ।
करते हुए, हमें जी० प्रदीपिकाके कृतृत्वविषयमें निम्न बातें सहायोऽस्यां कृतो चक्रऽधीता च प्रथम मुदा ॥६॥ मालूम होती हैं, और उनका ऐलक पक्षालाल सरस्वती भवन सूरेः श्रीधर्मचन्द्रस्याभयचन्द्रगणेशिनः ।
की हस्तलिखित प्रतिसे समर्थन भी होता है :वर्णिलालादिभव्यानां कृते कर्णाटवृत्तितः ॥१०॥ रचिता चित्रकूटे श्रीपार्यालये मुना।
___संस्कृत जी० प्रदीपिकाके कर्ता मूलसंध, शारदागच्छ, साधुसांगासहेसाभ्यां प्राथितेन मुमुक्षुणा ॥१॥ बलाकारगण, कुन्दकुन्द अन्वय और नन्दि भाम्नाय के गोम्मटसारवृत्तिहि नन्याद् भव्यः प्रवातता।
नेमिचन्द्र २३ हैं। वे ज्ञानभूषण भट्टारकके शिष्य थे। उन्हें शोधयनवागमास्किमिन विरुद्ध चेद बहुश्रुताः ॥१२॥ प्रभाचन्द्र भट्टारकके द्वारा, जोकि सफल वादी तार्किक थे. निर्ग्रन्थाचार्य वर्येण त्रैविद्यचक्रवर्तिना। संशोध्याभयचन्द्रणालेखि प्रथमपुस्तकः ॥१३॥२२
सूरि बनाया गया अथवा पाचर्यपद प्रदान किया गया था। यमाराध्यैव भव्योषाः प्राप्ताः कैवल्यसंपदः ।
कर्णाटकके जैनराजा मल्लिभूपालके प्रयत्नोंके फलस्वरूप शश्वतं पदमापुस्तं मूलसंघमुपाश्रये ॥१०॥
उन्होंने मुनिचन्द्रसे, जोकि 'विद्यविद्यापरमेश्वर' के पदसे २२ ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, बम्बईकी लिखित प्रति २३ पद्यात्मक प्रशस्ति उत्तमपुरुषमें लिखी गई है, इससे यह
परसे उद्धतभाग, कुछ छोटे छोटे भेद दिखलाता है। नामोल्लेख नहीं हुआ है।