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समाज-सुधारका मूल स्रोत
[वर्ष ४
के पास रहकर कोई जीवनोपयोगी शिक्षा प्राप्त नहीं भयङ्कर उपेक्षा तथा लाड़-प्यार दोनों ही बच्चोंकी करते । उनका समय प्रायः बुरी आदतें सीखने, मृत्यु या उनकं नितान्त गन्दे जीवनके प्रमुख कारण अनुचित खेलों और माताके लाड़-प्यारमें ही बीतता होते हैं। ऐसे बालक समाजपर बोझ होनेके सिवा है। शैशव जीवनके इस अमूल्य समयमें वे समुचित- अपनी काई उपयोगिता नहीं रखतं । समाजका सुधार शिक्षणसे वञ्चित रह जाते हैं।
तथा राष्ट्रका उद्धार ऐसे बालकोंसे नितान्त असम्भव
है। वह तो तभी सम्भव है जब उसके नागरिक शिशु अपना चरित्र-निर्माण गर्भावस्थामें ही विद्वान्, वीर, साहसी, निःस्वार्थसेवी, सदाचारी, प्रारम्भ कर देता है, यह कोरी कल्पना नहीं किंतु ब्रह्मचारी, स्वस्थ, दयालु और मानव-मात्रस बन्धुनम सत्य है । वीर अभिमन्यु तथा शिवाजीके जीवन- भाव तथा स्नेहका व्यवहार करने वाले हों। और यह चरित्र हमें इसी ओर संकेत कर रहे हैं। इस समय स्पष्ट ही है कि उत्तम नागरिक उत्तम माता-पिता ही बालकका मन एक प्रकारसे दर्पणके समान होता है, पैदा कर सकते हैं, और ऐसे ही नागरिकोंका समुदाय उस पर जैसी लाया या संस्कार पड़ता है, वैसा ही एक समुन्नत और समुज्ज्वल समाज हो सकता है, वह देख पड़ता है । गर्भ-कालमें ही बालकके जीवनपर औरोंका नहीं। बाल-जीवनके सुधारमें ही समाजमाता पिताक विचारों, व्यवहारों व भावोंकी छाप सुधार और राष्ट्रउद्धारके बीज संनिहित है । आशा पड़ती है। पर इस देशमें तो शिशु माता-पिताके समाजके शुभचिन्तक इस दिशाम कदम बढ़ाकर मनोरञ्जनका एक साधनमात्र हैं। अतएव उनकी गष्ट्रहितका मार्ग साफ करेंगे।
किसका, कैसा गर्व ?
(लेखक-पं० राजेन्द्रकुमार जैन 'कुमरंश') नव-सौन्दर्य सुमन सौरभ-सा
किसका, कैसा गर्व ? अरे ! पा जीवन मतवाला।
जब जीवन ही सपना है ! इठलाता-सा झूम रहा है,
सर्वनाश के इस निवास मेंपी यौवन की हाला!!
कौन, कहाँ, अपना है !! वैभवका यह नशा, रूप
जुड़ा रहेगा मदा नहींकी, यह कैसी नादानी !
यह दीवानों का मेला! हाय ! भूल क्यों रहा, मौत
एक एक का नाश करेगा की करूणाजनक कहानी !!
सहसा काल अवला!! तनिक देख! उस नील गगनमें
देखेगा वह नहीं कौन हैतारों का मुम्काना!
गोरा अथवा काला! दिनमें या घनघोर घटामें
धू धू करके धधक उठेगीचपके से छिप जाना !!
अरे ! चिता की ज्वाला ।। लता-गोदमें झूल, तनिक
यह तेरा अभिमान करेगापाकर पराग इतगया !
उस की ही अगवानी ! कल जो खिला आज वह ही
समय रेन पर उतर गया हैहै रो रो कर मुरझाया !!
बड़ों बड़ों का पानी !!