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अध्ययनों के निर्वृहण के पश्चात् उन्होंने चूलिकाओं की रचना की। सूत्र और चूलिकाओं की भाषा प्रायः एक सदृश है इसलिए अध्ययन और चूलिकाओं के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं। कितने ही विज्ञ इस अभिमत से सहमत नहीं है। उनका अभिमत है कि चूलिकाएं अन्य लेखक की रचनाएं हैं जो बाद में दस अध्ययनों के साथ जोड़ दी गईं।
आचार्य हेमचन्द्र ने 'परिशिष्ट-पर्व' ग्रन्थ में लिखा है कि आचार्य स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा ने अपने अनुज मुनि श्रीयक को पौरुषी, एकाशन और उपवास की प्रबल प्रेरणा दी। श्रीयक ने कहा बहिन ! मैं क्षुधा की दारुण वेदना को सहन नहीं कर पाऊंगा। किन्तु बहिन की भावना को सम्मान देकर उसने उपवास किया पर वह इतना अधिक सुकुमार था कि भूख को सहन न कर सका और दिवंगत हो गया। मुनि श्रीयक का उपवास में मरण होने के कारण साध्वी यक्षा को अत्यधिक हार्दिक दुःख हुआ। यक्षा ने मुनि श्रीयक की मृत्यु के लिए अपने को दोषी माना। श्रीसंघ ने शासनदेवी की साधना की। देवी की सहायता से यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी की सेवा में पहुंची। सीमंधर स्वामी ने साध्वी यक्षा को निर्दोष बताया और उसे चार अध्ययन चूलिका के रूप में प्रदान किए। संघ ने दो अध्ययन आचारांग की तीसरी और चौथी चूलिका के रूप में और अन्तिम दो अध्ययन दशवैकालिक चूलिका के रूप में स्थापित किए।११
दशवैकालिक नियुक्ति की एक गाथा में इस प्रसंग का उल्लेख मिलता है। आचार्य हरिभद्र ने दूसरी चूलिका की प्रथम गाथा की व्याख्या में उक्त घटना का संकेत किया है३ पर टीकाकार ने नियुक्ति की गाथा का अनुसरण नहीं किया, इसलिए कितने ही विज्ञ दशवैकालिकनियुक्ति की गाथा को मूलनियुक्ति की गाथा नहीं मानते। आचारांगचूर्णि में उल्लेख है कि स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा महाविदेह क्षेत्र में भगवान् सीमंधर के दर्शनार्थ गई थीं लौटते समय भगवान् ने उसे भावना और विमुक्ति ये दो अध्ययन प्रदान किए। आवश्यकचूर्णि में भी दो अध्ययनों का वर्णन है। प्रश्न यह है कि आचार्य हेमचन्द्र ने चार अध्ययनों का उल्लेख किस आधार से
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६१. श्री सघायोपदां प्रेषीन्मन्मुखेन प्रसादभाक् ।
श्रीमान्सीमन्धर स्वामी चत्वार्यध्ययनानि च ॥ भावना च विमुक्तिश्च रतिकल्पमथापरम् । तथा विचित्रचर्या न तानि चैतानि नामतः ॥ अप्येकया वाचनया मया तानि धृतानि च । उद्गीतानि च संघाय तत्तथाख्यानपूर्वकम् ॥ आचारांगस्य चूले द्वे आद्यमध्ययनद्वयम् । दशवैकालिकस्यान्यदथ संघेन योजितम् ॥
-परिशिष्ट पर्व, ९/९७-१००, पृ. ९० आओ दो चूलियाओ आणीया जक्खिणीए अज्जाए । सीमंधरपासाओ भवियाण विबोहणट्ठाए ॥
-दशवैकालिक नियुक्ति, गा. ४४७ ६३. एवं च वृद्धवाद: कयाचिदार्ययाऽसहिष्णुः कुरगडुकप्रायः संयतश्चातुर्मासिकादावुपवासं कारितः, स तदाराधनया मृत
एव, ऋषिघातिकाऽहमित्युद्विग्ना सा तीर्थंकरं पृच्छामीति गुणावर्जितदेवतया नीता श्रीसीमन्धरस्वामिसमीपं, पृष्टो भगवान्, अदुष्टचित्ताऽघातिकेत्यभिधाय भगवतेमां चूडां ग्राहितेति।
-दशवै. हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र २७८-२७९ ६४. दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ.५२ ६५. सिरिओ पव्वइतो अब्भत्तट्टेणं कालगतो महाविदेहे य पुच्छिका गता अजा दो वि अज्झयणाणि भावणा विमोत्ती य आणिताणि।
—आवश्यक चूर्णि, पृ. १८८ [२८]