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नाम दस और वैकालिक अथवा कालिक इन दो पदों से निर्मित है। सामान्यतः दस शब्द दस अध्ययनों का सूचक है और वैकालिक का सम्बन्ध रचना निर्यूहण या उपदेश से है । विकाल का अर्थ संध्या है। सामान्य नियम के अनुसार आगम का रचनाकाल पूर्वाह्ण माना जाता है किन्तु आचार्य शय्यम्भव ने मनक की अल्पायु को देखकर अपराह्ण में ही इसकी रचना या निर्यूहण प्रारम्भ किया और उसे विकाल में पूर्ण किया। ऐसी भी मान्यता है कि द विकालों या संध्याओं में रचना - निर्यूहण या उपदेश किया गया, इस कारण यह आगम 'दशवैकालिक' कहा जाने लगा। स्वाध्याय का काल दिन और रात में प्रथम और अन्तिम प्रहर है। प्रस्तुत आगम बिना काल (विकाल) में भी पढ़ा जा सकता है। अत: इसका नाम दशवैकालिक रखा गया है। अथवा आचार्य शय्यम्भव चतुर्दशपूर्वी थे, उन्होंने काल को लक्ष्य कर इसका निर्माण किया, इसलिए इसका नाम दशवैकालिक रखा गया है। एक कारण यह भी हो सकता है कि इसका दसवां अध्ययन वैतालिक नाम के वृत्त में रचा हुआ है, अतः इसका नाम दसवेतालियं भी संभव है।
हम यह लिख चुके हैं कि आचार्य शय्यम्भव ने अपने बालपुत्र मनक के लिए दशवैकालिक का निर्माण किया। मनक ने दशवैकालिक को छह महीने में पढ़ा, श्रुत और चारित्र की सम्यक् आराधना कर वह संसार से समाधिपूर्वक आयु पूर्ण कर स्वर्गस्थ हुआ । आचार्य शय्यम्भव ने संघ से पूछा— अब इस निर्यूढ़ आगम का क्या किया जाय ? संघ ने गहराई से चिन्तन करने के बाद निर्णय किया कि इसे ज्यों का त्यों रखा जाय। यह आगम मनक जैसे अनेक श्रमणों की आराधना का निमित्त बनेगा । इसलिए इसका विच्छेद न किया जाय । १९ प्रस्तुत निर्णय के पश्चात् दशवैकालिक का जो वर्तमान रूप है उसे अध्ययनक्रम से संकलित किया गया है । महानिशीथ के अभिमतानुसार पांचवें आरे के अन्त में पूर्ण रूप से अंग साहित्य विच्छिन्न हो जायेगा तब दुप्पसह मुनि दशवैकालिक के आधर पर संयम की साधना करेंगे और अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे।
चूलिका के रचयिता कौन ?
दस अध्ययनों और दो चूलिकाओं में यह आगम विभक्त है। चूलिका का अर्थ शिखा या चोटी है। छोटी चूला (चूडा) को चूलिका कहा गया है, यह चूलिका का सामान्य शब्दार्थ है । साहित्यिक दृष्टि से चूलिका का अर्थ मूल शास्त्र का उत्तर भाग है। यही कारण है कि अगस्त्यसिंह स्थविर ने और जिनदासगणी महत्तर ने दशवैकालिक की चूलिका को उसका 'उत्तर - तंत्र' कहा है। तंत्र, सूत्र और ग्रन्थ ये सभी शब्द एकार्थक हैं। जो स्थान आधुनिक युग के ग्रन्थ में परिशिष्ट का है, वही स्थान अतीतकाल में चूलिका का था । निर्युक्तिकार की दृष्टि से मूल सूत्र में अवर्णित अर्थ का और वर्णित अर्थ का स्पष्टीकरण करना चूलिका का प्रयोजन है। आचार्य शीलांक के अनुसार चूलिका का अर्थ अग्र है और अग्र का अर्थ उत्तर भाग है। यह अध्ययन संकलनात्मक है, किन्तु चूलिकाओं के सम्बन्ध में मूर्धन्य मनीषियों में दो विचार हैं। कितने ही विज्ञों का यह अभिमत कि वे आचार्य शय्यम्भवकृत । दस
५८. दशवैकालिक : अगस्त्यसिंह चूर्णि, पुण्यविजय जी म. द्वारा सम्पादित
५९. 'विचारणा संघ' इति शय्यम्भवेनाल्पायुषमेनमवेत्य मयेदं शास्त्रं निर्यूढं किमत्र युक्तमिति निवेदिते विचारणा संघे—
कालह्रासदोषात् प्रभूतसत्वानामिदमेवोपकारकमतस्तिष्ठत्वेतदित्येवंभूता स्थापना ।
६०. महानिशीथ अध्ययन ५, दुःषमाकरक प्रकरण ।
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— दशवैकालिक हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र २८४