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है ।' श्रमण भगवान् महावीर प्रभु सर्वज्ञ सर्वदर्शी होने के कारण मानव मन की कमजोरियों को अच्छी तरह से जानते थे । वे अपने श्रमणसंघ को उन कमजोरियों से बचाकर रखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने श्रमण संघ की सुदृढ़ आचार संहिता पर बल दिया। कभी ज्ञात अवस्था में और कभी अज्ञातावस्था में दोष लग जाता है । स्वीकृत व्रत भंग हो जाता है । व्रत भंग होने पर या दोष का सेवन होने पर उसकी शुद्धि हेतु प्रायश्चित्त संहिता का निर्माण किया। छेदसूत्रों में उन घटनाओं का निषेध किया है, जो संयमी जीवन को धूमिल बनाने वाली हैं तथा कुछ प्रायश्चित तात्कालिक घटनाओं पर भी आधारित हैं। पर हम गहराई से छेदसूत्रों का अध्ययन करते हैं तो लगता है कि वे सारे निषेध अहिंसा और अपरिग्रह को केन्द्र बनाकर समुपस्थित किये गये हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से पर्यवेक्षण करने पर यह भी सहज ज्ञात होता है कि भारतवर्ष में उस समय जो भिक्षु संघ थे उनमें इस प्रकार की प्रवृत्तियां प्रचलित रही होंगी। प्रवृत्तियां श्रमणसंघ के भ्रमण और श्रमणियां देखादेखी न अपना लेवें इस दृष्टि से श्रमणश्रमणियों को निषेध किया और कदाचित अपना लें तो उनके प्रायश्चित्त का भी विधान किया। इस प्रकार विविध दृष्टियों से निषेध और प्रायश्चित विधियाँ प्रतिपादित की गई हैं।
छेदसूत्रों में निशीथ का अपना मौलिक स्थान है। व्यवहारसूत्र में यह स्पष्ट वर्णन है कि जो भ्रमण बहुश्रुत हो, उसे कम से कम श्राचारप्रकल्प का अध्ययन आवश्यक है । जो आचारप्रकल्प का परिज्ञाता हो उसे ही उपाध्याय पद प्रदान किया जा सकता है । जिस भिक्षु ने गुरु के मुखारविन्द से आचारप्रकल्प का मूल अध्ययन किया हो और अर्थ की दृष्टि से अध्ययन करने का मन में दृढ़ संकल्प हो तो आचार्य और उपाध्याय का आकस्मिक स्वर्गवास हो जाने पर उस श्रमण को आचार्यपद या उपाध्यायपद प्रदान किया जा सकता है । 3 यदि युवक श्रमण किसी कारण से आचारप्रकल्प को विस्मृत हो गया है तो पुनः स्मरण करने पर उसे प्राचार्य आदि पद दिया जा सकता है । पर कोई स्थविर सन्त श्राचारप्रकल्प विस्मृत हो जाय और उसकी स्मरण करने की शक्ति नहीं है तो भी उसे प्राचार्य पद दिया जा सकता है। जिस श्रमणी को आचारप्रकल्प याद है उसे प्रवर्तिनी पद दिया जा सकता है। यदि प्रमादवश जो श्रमणी आचारप्रकल्प विस्मृत हो गई है किन्तु यह पुनः स्मरण करने का प्रयत्न कर रही हो तो उसे प्रवर्तिनी पद दिया जा सकता है । ६
जो श्रमण और श्रमणियां स्थविर हैं। अवस्थाविशेष के कारण यदि वे आचारप्रकल्प विस्मृत हो गये तो
वे सोये हुए या बैठे हुए किसी भी अवस्था में आचारप्रकल्प के सम्बन्ध में प्रतिप्रश्न कर सकते हैं और प्रतिस्मृति
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जं च महाकप्पसुयं, जाणिय से णाणि छेयसुत्ताणि । चरणकरणाणुओगोत्ति, कालियत्थे उवगयाई ॥ - आवश्यकनियुक्ति, ७७८ निशीथभाष्य ६१९० तिवासपरियाए समणे निग्गन्ये प्रायारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पणतिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अवयावारे अभिन्नावारे असं किलिट्ठायारचित्ते बहुस्सुए बभागमे जहन्नेणं श्रायारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायताए उद्धिसित्तिए व व्यवहार ३।३ निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ आयरियउपज्झायत्ताए उद्दिसत्तए, समुच्छेयकप्पंसि । तस्स णं आयारपकप्पस देसे वट्टिए, से य अहिज्जिस्सामित्ति अहिज्जेज्जा एवं से कप्पइ आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दित्तिए, से य अहिज्जिरसामित्ति नो महिज्जेज्जा एवं से नो कप्पर सामरिय उवज्झायत्ताए उद्दित्तिए ।
- व्यवहार ३।१०
व्यवहार ५१५
व्यवहार, ५३१७
व्यवहार, ५।१६
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