Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे छाया-एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां सवेदकानाम्, स्त्रीवेदकानाम्, पुरुषवेदकानाम्, नपुंसगवेदकानाम्, अवेदकानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः जीवाः पुरुषवेदकाः स्त्री वेदकाः संख्येयगुणा अवेदकाः अनन्तगुणाः, नपुंसक वेदकाः अनन्तगुणाः, सवेदका विशेषाधिकाः, द्वारम् ५ ॥ सू० ११॥
टीका-अथ वेदद्वारमधिकृत्याल्पबहुत्यादिकं प्ररूपयितुमाह-'एएसिणं भंते जीवाणं' हे भदन्त ! एतेषां खलु जीवानाम् ‘सवेयगाणं' सवेदकानाम् समुच्चयवेदकानाम् 'इत्थीवेयगाणं' स्त्रीवेदकानाम्, 'पुरिसवेयगाणं' पुरुषवेदकानाम् 'नपुंसगवेयगाणं' नपुंसकवेदकानाम्, 'अवेयगाण य' अवेदकानाञ्च सिद्धानाम् (सवेयगाणं) वेद सहितों (इत्थी वेयगाणं) स्त्रीवेदकों (पुरिसवेयगाणं) पुरुष वेदकों (नपुंसगवेयगाणं) नपुंसक वेदकों (अवेयगाण य) और अवेदकों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा या बहुया तुल्ला या विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा जीया पुरिसवेयगा) सबसे कम जीव पुरुषवेदी हैं (इत्थीवेयगा संखेज्जगुणा) स्त्रीवेदी संख्यातगुणा अधिक हैं (अवेयगा अणंतगुणा) अवेदी अनन्तगुणा हैं (नपुंसगयेयगा अणंतगुणा) नपुंसकवेदी अनन्तगुणा हैं (सवेयगा विसेसाहिया) सवेद जीव विशेषाधिक हैं। __ अब वेदवार की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्रदर्शित किया जाता है
टीकार्य श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! इन सवेद अर्थात् वेद से युक्त जीवों में, स्त्रीवेद वालों में, पुरुषवेद वालों में, सहित (इत्यीवेयगाणं) स्त्री हो। (पुरिस वेयगाणं) ५३५३४। (नपुंसगवेयगाणं) नस४ वह। (अवेयगाण य) मने मवेहीमा (कयरे कयरेहितो) नाथी (अप्पावा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) २५८५; ५ए, तुक्ष्य २२ विशेषाधिः छ ?
___ (गोयमा) 3 गौतम ! (सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेयगा) माथी छ। ५३५ वही छ (इत्थीवेयगा संखेज्जगुणा) स्त्री वही साता अघि छ (अवेयगा अर्णतगुणा) अवेही मनन्त छ (नपुंसगवेयगा अणंतगुणा) नपुंसवही मनन्त गए। छे (सवेयगा विसेसाहिया) सवेढ४ ७५ विशेषाधि छे.
હવે વેદદ્વારની અપેક્ષાએ અલ્પ બહુત્વ પ્રદર્શિત કરાય છે
ટીકાર્ય–શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-ભગવન્! આ સવેદ અર્થાત્ વેદથી યુક્ત જીવમાં, સ્ત્રી વેદનાળામાં, પુરૂદવાળામાં, નપુંસક વેદનાળામાં તથા અવેદ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨