Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रबोधिनी टीका पद ६ सू.९ उरपरिसर्पादीनामेकसमयेनोपपातनि० कोरः परिसर्प स्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! संमृद्धिमेभ्य उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदि संमूच्छिमोरः परिसर्पस्थललचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकसंमूर्छिमेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकसंमू
मोरः परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकोरः परिसर्पस्थळचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्तकेभ्य
उत्पन्न होते है ? (गग्भवक्कंतिय उरपरिसप्पथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ?) गर्भजउरपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थचों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (समुच्छि मेहिंतो उवयज्र्ज्जति, गन्भवक्कंतिएहिंतो वि उववज्जंति) संमूर्छिमों से उत्पन होते हैं और गर्भजों से भी उत्पन्न होते हैं ।
(ज) यदि ( संमुच्छिमउरपरिसप्पथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिए. हिंतो उववज्जंति) संमूर्छिमउर परिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं। (किं पज्जत्तएहिंतो उववज्र्ज्जति, अपज्जत्तएहिंतो उचबज्जंति ?) क्या पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं । (गोयमा) हे गौतम ! (पजत्तगसंमुच्छि मेहिंतो उववज्जंति) पर्याप्तक संमूर्छिमों से उत्पन्न होते हैं (नो अपज्जन्त्तगसंमुच्छिमउर परिसप्पथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवज्जंति ?) अपर्यासक संमूर्छिम उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिय चों से नहीं उत्पन्न होते ।
उर परिसप्पथलयरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जति ?) गर्ल २परिसर्प स्थक्षयर पथेन्द्रिय तिर्यथोथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा !) हे गौतम! (समुच्छि मेहिं तो उववज्जति, गन्भववकं तिएहिं तो वि उववज्जति) सभूछि भोथी ઉત્પન્ન થાય છે અને ગર્ભજોથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે.
(जइ) यहि (समुच्छिमउरपरिसप्पथलयर पंचि दियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जति) संभूर्छिम ७२परिसर्प स्थलयर पथेन्द्रिय तिर्यथाथी उत्पन्न थाय छे (किं पज्जतएहिंतो उब्वज्जति, अपज्जतएहिं तो उववज्जति) शुं पर्यासअथी उत्पन्न थाय छे } अथर्यासअथी उत्पन्न थाय छे ? ( गोयमा) हे गौतम (पज्जत्तग संमुच्छिमेहिंतो उववज्जपि) पर्यास संभूछिभोथी उत्पन्न थाय छे (नो अपज्जत्तग संमुच्छिम उरपरिसप्पथलय रपंचिं दियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जति) अपर्याप्त સમૂઈિમ ઉરપરિસ` સ્થલચર પ ંચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન નથી થતા
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨