Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1099
________________ १०८४ प्रज्ञापनासूत्रे तदा किं पुढविकाइएहिंतो उपवज्र्ज्जति ?' किं पृथिवी कायिकेभ्य उपपद्यन्ते ? किंवा अकायिकेभ्यः तेजः कायिकेभ्यः वायुकायिकेभ्यः वनस्पतिकायिकेभ्यः उपपद्यन्ते ? इत्याद्यमिप्रायेणाह एवं जहा पुढविकाइयाणं उपवाओ भणिओ तहेब एएसिपि भाणियव्वो' एवम् पूर्वोक्तरीत्या यथा - पृथिवीकायिकानामुपपातो भणितस्तथैव एतेषामपि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् उपपातो भणितव्यः, किन्तु 'णवरं देवेहितो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेर्हितो वि उववज्जंति' नवरम् - पूर्वोक्तपृथिवीकायिकापेक्षया विशेषस्तु देवेभ्यो यावत्भवनपतिबानव्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशान सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशु - सहस्रारकल्प वगवैमानिकदेवेभ्योपि उपपद्यन्ते 'नो आणयकप्पोबगवेमाणियदेवेत जाव अच्चुतो वि उववज्जंति' नो आनतकल्पोपगवैमानिकदेवेभ्यो यावत् नो प्राणतकल्पोपगवैमानिकदेवेग्यो, नो वा आरणकल्पोपगवैमानिकदेवेभ्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका उपपद्यन्ते, गौतमः पृच्छति - 'मणुस्साणं भंते ? कायिकों से उत्पन्न होते हैं, या अप्कायिकों से, तेजःकायिकों से वायुकायिकों से अथवा वनस्पतिकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? भगवान् - जैसे पृथ्वीकायिकों का उपपात कहा है, वैसा ही इन पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का भी कहना चाहिए, विशेष यह है कि देवों से जो उपपात होता है, वह सहस्रारकल्प के देवों तक से ही होता है, अर्थात् भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म ईशान, सनत्कुमार माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार वैमानिक देवों से ही पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का उपपात होता है, आनत, प्राणत आरण और अच्युत विमानों के देवों से नहीं होता । गौतम - हे भगवन् ! मनुष्य किन से उत्पन्न होते हैं, क्या नारकों પૃથ્વીકાયિકાથી ઉત્પન્ન થાય છે વા અકાયિકાથી, તેજ:કાયિકાથી, વાયુકાય. કાથી અથવા વનસ્પતિકાયિકાથી ઉત્પન્ન થાય છે? શ્રી ભગવાન્ :–જેવા પૃથ્વીકાયિકાના ઉપપાત કહ્યો છે, તેવા જ આ પંચેન્દ્રિય તિય ચાના પણ ઉપપાત કહેવા જોઇએ. વિશેષ એ કે દેવાથી જે ઉપપાત થાય છે, તે સહસ્રાર કલ્પના દેવા સુધી જ થાય છે, અર્થાત્ लवनयति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्ठ, सौधर्म, शान, सनत्कुमार, भाहेन्द्र, બ્રહ્મલાક લાન્તક, મહાશુષ્ક, અને સહુન્નાર વૈમાનિક દેવાથી જ પોંચેન્દ્રિય तिर्यथाना उपयात थाय छे, भानत, आयुत, भार નાના દેવાથી ઉત્પન્ન નથી થતા. भने अभ्युत विभा શ્રી ગૌતમસ્વામી : મ્હે ભગવન્ ! માણસ કાનાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨ -

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