Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे दर्शनाभ्याम् पदस्थानपतितः, एवमुत्कृष्टाभिनिबोधिकज्ञानी अपि, नवरम् - आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवैः तुल्यः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, त्रिभिर्ज्ञानः, त्रिभि दर्शनैः, षट्स्थानपतितः, अजघन्यानुत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी यथा उत्कृष्टाभिनिबोधिकज्ञानी, नवरं स्थित्या चतुःस्थानपतितः, स्वस्थाने पट्स्थानपतितः, एवं श्रुतज्ञानी अपि जघन्यावधिज्ञानिनां भदन्त ! मनुष्याणां कियन्तः, पर्यवाः
ज्ञान के पर्यायों से तुल्य (सुयनाणपज्जवेहिं ) श्रुतज्ञान के पर्यायों से (दोहिं दंसणेहि) दो दर्शनों से (छडाणवडिए) षट्स्थानपतित ( एवं उक्कोसाभिणिबोहिकनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी भी (नवरं) विशेष (आभिणिबोहियनाणपज्जवेहिं तुल्ले) आभिनिबोधकज्ञान के पर्यायों से तुल्य (ठिईए तिट्ठाणर्वाडए) स्थिति से त्रिस्थानपतित (तिहिं नाणेहिं) तीन ज्ञानों से (तिहिं दंसणेहिं) तीन दर्शनों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित (अजहण्णमणुक्कोसाभिणिबोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणिवोहियनाणी) मध्यम अभिनिबोधिक ज्ञानी जैसे उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी (नवरं) विशेष (ठिईए चउद्वाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (सहाणे छाणवडिए) स्वस्थान में षट्स्थानपतित ( एवं सुयणाणी वि) इसी प्रकार श्रुतज्ञानी भी
(जहण्णोहिनाणीणं भंते! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता) जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के हे भगवन् ! कितने पर्याय कहे हैं ? ( गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे षटस्थान पतित (एवं उक्कोसाभिणिबोहियनाणी वि) से प्रारे उत्सृष्ट मालि निमोधिज्ञानी पशु (नवर) विशेष (आभिणिबोहियनाणपज्जवेहिं तुल्ले) मालिनिमोधिठज्ञानना पर्यायाथी तुझ्य (टिईए तिट्ठाणवडिए) स्थितिथी त्रिस्थान पतित (तिहिं नाणेहि) ज्ञानोथी (तिहिं दंसणेहिं) त्रयु दर्शनाथी (छट्टाणवडिए ) - स्थान पतित ( अजहण्णमणुकोसाभिणिबोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियनाणी) मध्यम मालिनियोधि ज्ञानी नेवा उत्सृष्ट मामिनिमोधि ज्ञानी (नवरं ) विशेष (ठिईए चउद्राणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (सट्टाणे छट्टाणवडिए) स्वस्थानमां षटस्थान पतित ( एवं सुयणाणी वि) से प्रहारे श्रुतज्ञानी पशु
( जहण्णोहिनाणीणं भंते ! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? ) ४धन्य अवधिज्ञानी मनुष्योना हे भगवन् ! डेंटला पर्याय उद्या छे ? (गोयमा ? अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे गौतम! अनन्त पर्याय उद्या छे (से केणट्टेणं भंते ! एव
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨