Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
८७०
प्रज्ञापनासूत्रे
कोsपि एवञ्चैव, नवरं स्वस्थाने पदस्थानपतितः, 'एवं याबद् दशप्रदेशिको, नवरम् - प्रदेश परिवृद्धिः, अवगाहनया तथैव, जघन्यगुणकालकानां भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यगुणकालकानां संख्येयप्रदेशिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यगुणकालकः संख्येयप्रदेशिको जघन्यगुणकालकस्य संख्येयप्रदे शिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया द्विस्थानपतितः अवगाहनार्थतया द्वि
(ra realeyrateए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टगुण कृष्ण भी (अजहण्णमणुक्को सगुणकालए वि एवं चेव) मध्यमगुण काला भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे छट्टाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित ( एवं जाव दसपए सिए) इसी प्रकार यावत् दसप्रदेशीं (नवरं ) विशेष (परसबुड्ढी) प्रदेश की वृद्धि करनी चाहिए (ओगाहणाए तहेव) अवगाहना से उसी प्रकार
(जहण्णगुणकालियाणं भते ! सखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) जघ न्यगुण काले संख्यातप्रदेशी स्कंधों की पृच्छा (गोयमा ! अनंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ जहण्णगुणकालयाणं संखेजपएसियाणं अनंता पजवा पण्णत्ता ? ) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले संख्यातप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! संखेज्जपएसिए जहण्णगुणकालए संखेज्जप एसियस्स जहण्णगुणकालयस्स दव्वह याए तुल्ले) हे गौतम! संख्यातप्रदेशी जघन्यगुण काला संख्यातप्रदेशी
( एवं उक्कोसगुणकालए वि) से प्रहारे उत्ष्ट गुणु सॄष्णु पए (अजहण्ण मणुको सगुणकाल वि एवं चेव) मध्यम गुशु अणाय से प्रारे (नवर सट्ठाणे छट्ठाणवडिए) विशेष छे स्वस्थानमां षट्स्थानपतित ( एवं जाव दसपएसिए) श्ये अठारे यावत् दृश प्रदेशी (नवर ) विशेष ( परसबुड्ढी ) अद्वेशनी वृद्धि अरवी लेह से (ओगाहाणाए तहेव ) अवगाहनाथी से प्रहारे
(जहण्णगुणकालयाणं भंते! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) જધન્ય ગુણ अणा संख्यात प्रदेशी सुन्धोनी पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ) हे गौतम ! अनन्त पर्याय उद्या छे (से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - जहण्णगुण कालयाणं संखेज्जपएसियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता १) शा १२ हे भगवन् ! એવુ કહેવાય છે કે જઘન્ય ગુણુકાળા સખ્યાત પ્રદેશી કન્યાના અનન્ત પર્યાય ह्या छे ? (गोयमा ! संखेज्जपएसिए जहणगुणकालए संखेज्जप एसियस्स जहण्णगुणकालयस्स दव्बट्टयाए तुल्ले) डे गौतम ! सभ्यात अहेशी धन्य गुए।
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨