Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे ज्ञानपर्यवैः, त्रिभिरज्ञानैः, त्रिभिर्दर्शनैश्च षट्स्थानपतितः, एवमुस्कृष्टावगाहनकोऽपि, एवम् अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि, नवरम् उत्कृष्टावगाहनकोऽपि असुरकुमारः स्थित्या चतुः स्थानपतितः, एवं यावत् स्तनितकुमाराः।
टीका--पूर्व सामान्यतोऽसुरकुमारादीनां पर्यायप्ररूपणं कृतम्, सम्प्रति जघन्यावगाहनकानामसुरकुमारादीनां पर्यायं प्ररूपयितुमाह-'जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असुरकुमाराणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गौतमः ! पृच्छति-'हे भदन्त ! जघन्यावगाहनकानाम् जघन्यम् अवगाहनं-शरीरोच्छ्यो येषां ते जघन्यावगाहश्रुतज्ञान के पर्यायों से (ओहिणाणपज्जवेहिं) अवधिज्ञान के पर्यायों से (तिहिं अण्णाणेहिं) तीन अज्ञानों से (तिहिं दंसणेहि य) और तीन दर्शनों से (छट्ठाणवडिए) षट्रस्थानपतित है (एवं उक्कोसोगाहणए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी (एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि) इसी प्रकार मध्यम अवगाहना वाला भी (नवरं) विशेष यह कि (उक्कोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठिईए चउहाणवडिए) उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी असुरकुमार स्थिति से चतुःस्थानपतित है (एवं जाव थणियकुमारा) स्तनितकुमारों तक इसी प्रकार जानना। ___टीकार्थ-पहले सामान्य रूप से असुरकुमारों आदि के पर्यायों की प्ररूपणा की गई, अब जघन्य अवगाहना वाले आदि असुरकुमारों के पर्यायों को प्ररूपणा की जाती है__ गौतम हे भगवन् ! जघन्य अवगाना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे गए है ? श्रुतज्ञानना पर्यायथी (ओहिणाण पज्जवेहिं) Aqधिज्ञानना पर्यायथी (तिहिं अण्णा णेहिं) र २मज्ञानाथी (तिहिं ईसणेहिंय) भने त्राशनाथी (छटाणवहिए) षटस्थान पतित छे (एवं उक्कोसोगाहणए वि) से प्रारे कृष्ट अपना पामा ५४ (एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणाए वि) मे रे मध्यम मा . साईनाव ५५ (नवरं) विशेष से छे (उकोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठिईए चउदाणवडिए) पृष्ट मगाउनावा॥ ५५ असु२भार स्थितिथी यतु:स्थान पतित छ (एवं जाव थणियकुमारा) स्तनमा२। सुधी से प्रा२ न.
ટીકાથ–પહેલા સામાન્ય રૂપથી અસુરકુમાર આદિના પર્યાની પ્રરૂપણ કરી. હવે જઘન્ય અવગાહનાવાળા અસુરકુમારના પર્યાયની પ્રરૂપણ કરાય છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી–ભગવન્! જઘન્ય અવગાહનાવાળા અસુરકુમારોના કેટલા પર્યાય કહેલા છે?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨