Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे नवरं स्वस्थाने चतुःस्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानां पृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जघन्यस्थिकानां पृथिवीकायिकानां अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिक पृथिवीकायिको जघन्यस्थितिकस्य पृथिवीकायिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, स्थित्या तुल्यः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः मत्यज्ञानपर्यवैः, श्रुताज्ञानपर्यवैः अचक्षुर्दर्शनपर्यवैः षट्स्थानपतितः, एवम् वाला भी (अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) मध्यम अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे चउहाणवडिए) विशेष यह कि मध्यम अवगाहना वाला स्वस्थान में भी चतुःस्थानपतित है
(जहण्णठिइयाणं पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) जघन्य स्थिति वाले प्रथ्वीकायिकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! अर्णता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणे पुढविकाझ्याण अणंता पजवा पण्णत्ता ?) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णठिइए पुढविकाइए जहण्णठिइयस्स पुढविकाइयस्स व्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य स्थिति वाला पृथ्विकायिक जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए) अवगाहना से चतुस्थानपतित है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है (वण्ण-गंध रस-फास पजवेहिं) वर्ण, हण्ण मणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) मध्यम अगाडनावा॥ ५९ मे प्रहार (नवरं सदाणे चउदाणवडिए) विशेष से छे मध्यम मानावा स्वस्थान भां ५५ यतु:स्थान पतित छे (जहण्णठिइयाणं पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) धन्य स्थितिमा पृथ्वीविना विषयमा छ। ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) है शीतभ ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणद्वेणं भंते ! एव बुच्चइ-जहण्णठिइयाणं पुढविकाइयाणं अणंता पजवा पण्णत्ता) ॥ ४२णे भगवन् म यु छ ।
धन्य स्थितिमा पृथ्वी43ना अनन्त पर्याय छे (गोयमा ! जहण्ण ठिईए पुढविकाइए जहण्णठिइयस्स पुढविकाइयस्स दवट्टयाए तुल्ले) 3 गौतम ! જઘન્ય સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિક જઘન્ય સ્થિતિવાળ પૃથ્વીકાયિકથી દ્રવ્યની अपेक्षाये तुल्य छ (पएसट्ठयाए तुल्ले) प्रवेशानी अपेक्षाये तुल्य छ (ओगाहणद्वयाए चउढाणवडिए) म नाथी यतु:स्थानपतित छ (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुल्य छ (वण्ण, गंध, रस फासपज्जवेहिं) पशु, ध, २स,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨