Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययोधिनी टीका पद ४ सू.९ वैमानिकदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५२१ अन्तर्मुहूत्तौनानि, ब्रह्मलोके कल्पे देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सप्तसागरोपमानि, उत्कृष्टेन दशसागरोपमानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा ? गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सप्तसागरोपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन दशसागरोपमानि अन्तर्मुहूत्तॊनानि, लान्तके कल्पे देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन दशसागरोपमानि, उत्कृष्टेन चतुर्दशसागरो
और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक देवों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा ! जहणणेणं दो सागरोवमाई साइरेगाइ अंतोमुहुत्तूणाई', उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई साइरेगाइ अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सातिरेक दो सागरोपम, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सातिरेक सात सागरोपम की।
(बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा ?) ब्रह्मलोक कल्प में देवों की स्थिति कितनी ? (जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई) जघन्य सात सागरोपम, उत्कृष्ट दस सागरोपम (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त की (पजत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहणणेणं सत्तसागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण दस सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की। (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य भने अट मन्तभुतानी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यास वानी स्थितिनी २छ। ? (गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमाई साइरेगाइं अंतोमुहत्तणाई, उक्कोसेण सत्तः सागरोवमाई, अंतोमुहुत्तूणाई) गौतम ! धन्य मन्तभुत माछा सातिरे બે સાગરેપમ, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા સાતિરેક સાતસાગરોપમની.
(बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा ?) ब्रह्म४३८५म वानी स्थिति सी ? जहण्णेणं सत्तसागरोवमाई, उक्कोसेणं दससागरोवमाई) न्य सात सागरापभ, Save ४शसाग।५म (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तीनी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं) गौतम ! धन्य भने उत्कृष्ट मन्तभुतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यात हेवानी स्थिति सी ?) (गोयमा ! (जहण्णेणं सत्तसागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं दससागरोवमाइं अंतोमुहुत्तणाई) गौतम ! धन्य मन्तभुत माछा, साता॥२।५म मन उत्कृष्ट અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા દશ સાગરોપમની,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨