Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे गाभ्यधिको वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, असंख्येयगुणाभ्यधिको वा, स्थित्या स्यात् हीनः, स्यात् तुल्यः, स्यात् अभ्यधिकः, यदा होन:-असंख्येयभागहीनो वा, संख्येयभागहीनो बा, संख्येयगुणहीनो वा, असंख्येयगुणहीनो वा, अथ अभ्यधिक:-असंख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, असंख्येयगुणाभ्यधिको वा, कृष्णवर्णपर्यवैः स्यात् हीनः, हिए वा संखेज्जइभागमभहिए वा) असंख्यात भाग अधिक है या संख्यात भाग अधिक है (संखेज्जगुणमन्भहिए वा असंखिज्जगुणमन्भहिए वा) संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक है।
(ठिईए) स्थिति की अपेक्षा से (सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए) स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधिक है (जइ हीणे असंखेज्जइभाग हीणे वा संखेज्जइभाग हीणे वा) यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन है (संखिज्जगुणहीणे वा असंखिज्जगुणहीणे वा) संख्यातगुणहीन या असंख्यातगुण हीन है (अह अन्भहिए) अगर अधिक है तो (असंखिज्ज भागमहिए या संखिज्जभागमभहिए वा) असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग अधिक है (संखिज्जगुणमन्भहिए वा असंखिज्जगुणमन्भहिए वा) संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक है।
(कालवण्ण पज्जवेहिं सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए) कृष्णवर्ण पर्यायों से स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधिक है (जइ हिए वा सखेज्जइ भागमभहिए वा) मस-यात माथि छ या सण्यात माग माधि डाय छ (संखेज्जगुणमब्भहिए वा असं खिज्जगुणमब्महिए वा) यातशुष्प अधि: । असभ्यात गुण मधि डाय छ (ठिईए) स्थितिनी अपेक्षा (सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए) स्यात् डीन; स्यात् तुझ्य; स्यात् यघि डाय छ (जइ हीणे असखेज्जइ भाग हीणे वा संखेज्जभाग हीणे वा) ने डीन हायता असण्यात मा डीन मथ। सयाना डीन डाय छ (सखिज्जगुणहीणे वा अस खिज्ज गुणहीणे वा) सण्यात गुडान १२ अस यातशुष्प हानहाय छ (अह अब्भहिए म॥२ मधि डाय तो (असं खिज्जभागमब्भहिए वा संखिज्जभागमब्भहिए वा) असण्यात मा मधि४ या संन्यात मा मधिर डाय (सखिज्जगुणमब्भहिए वा असं खिज्जगुणमब्भहिए वा) सध्यात शुष्ण मधि या मण्यात गुण भघि छ.
(कालवण्णपज्जवेहिं सीय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अमहिए) ४०५ १ पर्यायाथी स्यात् डीन; त्यात तुल्य; भने स्यात् मधिर छ. (जइ होणे अणंत
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨