Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयवोधिनी टीका पद ५ सू.६ नैरयिकाणां पर्यायनिरूपणम् न्यानुत्कृष्टाभिनिबोधिकज्ञान्यपि एवञ्चैव, नवरम् आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवैः स्वस्थाने षट्स्थानपतितः, एवं श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञान्यपि, नवरं यस्य ज्ञानानि तस्य अज्ञानानि न सन्ति, यथा ज्ञानानि तथा अज्ञानान्यपि भणितव्यानि, नवरं यस्याज्ञानानि तस्य ज्ञानानि न भवन्ति, जघन्यचक्षुर्दर्शनीनां भदन्त ! नैरयिकाणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्य चक्षुर्दर्शनिको नैरयिको (एवं उक्कोसाभिणियोहियनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी (अजहण्ण मणुक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि) मध्यम आभिनिबोधिकज्ञानी भी (एवं चेव) इसी प्रकार (णवरं) विशेष यह कि (आभिणिबोहियनाणपज्जवेहिं सहाणे छट्ठाणवडिए) अभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों से स्वस्थान में षट् स्थानपतित है (एवं सुयनाणी) इसी प्रकार अतज्ञानी (ओहिनाणी वि) अवधिज्ञानी भी (नवरं) विशेष (जस्स नाणा तस्स अण्णाणा नत्थि) जिसे ज्ञान होते हैं उसे अज्ञान नहीं होते (जहा नाणा तहा अण्णाणा वि भाणियव्वा) जैसे ज्ञान वैसे अज्ञान भी कहने चाहिए (नवरं जस्स अन्नाणा तस्स नाणा न भवंति) बिशेष यह कि जिसे अज्ञान हैं उसे ज्ञान नहीं होते।
(जहण्ण चक्खुदंसणीणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जया पण्णत्ता ?) जघन्य चक्षुदर्शनी नारक के हे भगवन् ! कितने पर्याय कहे हैं? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ जहण्ण चक्खुदंसणीणं नेरइयाणं साभिणिबोहियनाणी वि) से सारे दुष्ट मानिनिमाधि ज्ञानी ५५ (अजण्ण मणुकोसाभिणिवोहियाणाणी वि) मध्यम मालिनिमाधिज्ञानि ५५१ (एवं चेव) से
४२ (नवरं) विशेष से छे ? (आभिणिबोहिनाणपज्जवेहिं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए) लि. निमाधिज्ञानना पर्यायाथी स्वस्थानमा पट्थान पतित छ (एवं सुयनाणी) मे प्रमाणे श्रुतज्ञानी (ओहिनाणी वि) मधिज्ञानी ५९ (नवर) विशेष (जस्स नाणा तस्सअण्णाणा नत्थि) ने ज्ञान डाय छेतेने सज्ञान नथी डातु (जहा नाणा तहा अण्णाणा विभाणियब्वा) २वी रीते ज्ञान थन युछेते रीते अज्ञाननु पथन ४२९ नये (नवर जस्स अन्नाणा तस्स नाणा न भवंति) विशेष ने अज्ञान लेतन ज्ञान नथी थतु (जहण्ण चक्खुदंसणीणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?)
धन्य यक्षुशनी नाना भगवन् ! डेटा पर्याय ४ा छे (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨