Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.३ असुरकुमाराणां पर्याय निरूपणम् ५७३
छाया- अमुरकुमाराणां भदन्त ! कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-असुरकुमाराणाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! असुरकुमारः असुरकुमारस्य द्रव्यार्थतया तुल्या, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतु:स्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, कृष्णवर्ण पर्यवैः षट्स्थानपतितः, एवं नीलवर्णपर्यवैः, लोहितवर्णपर्यवैः हारिद्रवर्णपर्यवैः, शुक्लवर्णपर्यवैः, सुरभिगन्धपर्यवैः, दुरभिगन्धपयेवैः, तिक्तरसपर्यवैः,
असुरकुमार पर्याय वक्तव्यता शब्दार्थ-(असुरकुमाराणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (अणंता पजवा पण्णत्ता) अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणढे णं भंते ! एवं बुच्चइ) किस हेतु से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि (असुरकुमाराणं अणंता पन्जवा) असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं (गोयमा) हे गौतम ! (असुरकुमारे असुरकुमारस्स) एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से (व्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले) द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउट्टाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा चतुः स्थानपतित है (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (कालवण्ण पनवेहिं छहाणवडिए) कृष्णवर्ण पर्यायों से षट्स्थानपतित है (एवं) इसी प्रकार (नीलवण्ण पज्जवेहि, लोहियवण्णपजवेहि, हालिद्दवण्णपज्जवेहि, सुक्किल्लवण्ण पज्जवेहिं) नीलवर्ण पर्यायों से, लोहित, हारिद्र, और शुक्लवर्ण के
અસુરકુમાર પર્યાય વક્તવ્યતા २०४ाथ-(असुरकुमाराण भंते ! केवइया पजवा पण्णत्ता ?) हे मावन् ! असुमाराना टसा पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ! ) गौतम ! (अणंता पज्जवा पण्णत्ता) अनन्त पर्याय ४ा छ. 3 मावन् ! ४॥ हेतुथी मेम उपाय छ है (असुरकुमाराणं अणता पज्जवा) असुभाशना मनन्त पर्याय छ गौतम ! (असुरकुमारे असुरकुमारस्स) से असुमा२ मीन असु२४मारथी (दवट्याए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले) द्रव्यनी २५पेक्षाये तुल्य छे. २५ने प्रशानी अपेक्षाये ५५५ तुक्ष्य छे. (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) साइनानी अपेक्षा यतुःस्थान पतित छ (ठिईए चाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान। पतित छे (कालवण्णपज्जवेहिं छदाणवडिए) व पर्यायाथी पट्थान पतित छे (एवं) रीते (नीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिइवण्णपज्जवेहिं सुकिल्लवण्णपज्जवेहिं) नीस ना पायथी, सोडित, रिद्र, मने शुदा ना पर्यायोथी (सुन्भिगंध
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨