Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययोधिनी टीका पद ३ सू.३२ क्षेत्रतः भवनपत्यादि देवानामल्पबहुत्वम् ३०५ एकेन्द्रिया जीवाः पर्याप्तकाः, ऊर्ध्वलोकतिर्यग्लोके, अधोलोकतिर्यग्लोके विशेषाधिकाः, तिर्यग्लोके असंख्येयगुणाः, त्रैलोक्ये असंख्येयगुणाः ऊर्ध्वलोके असंख्येयगुणाः, अधोलोके विशेषाधिकाः, ॥सू० ३२॥ ___टीका-अथ समुच्चयैकेन्द्रियाणां पर्याप्तापर्याप्तकैकेन्द्रियजीवानां चाल्पबहुत्वं प्ररूपयितुमाह-'खेत्ताणुवाएणं' क्षेत्रानुपातेन-क्षेत्रानुसारेण प्ररूप्यमाणाः ‘सव्वत्योया एगिदिया जीवा उडलोयतिरियलोए' सर्वस्तोका:-सर्वेभ्योऽल्पाः, एकेन्द्रियाः सामान्यजीवाः, ऊर्ध्वलोकतिर्यग्लोके-तत्प्रतरद्वयवर्तिनो भवन्ति, तत्रमें असंख्यातगुणा हैं (उड्ढलोए असंखेजगुणा) ऊर्ध्वलोक में असं. ख्यातगुणा हैं (अहोलोए विसेसाहिया) अधोलोक में विशेषाधिक हैं । ____ (खेत्ताणुवाएणं) क्षेत्र की अपेक्षा से (सव्यत्योवा एगिदिया जीवा पज्जत्तगा' उडलोयतिरियलोए) सब से कम एकेन्द्रिय जीव पर्याप्तक ऊर्ध्वलोक-तिर्यकलोक में हैं (अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया) अधोलोक-तिर्यक्रलोक में विशेषाधिक हैं (तिरियलोए असंखेज्जगुणा) तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणा है (तेलोक्के असंखेज्जगुणा) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणा हैं (उड्डलोए असंखिजगुणा) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणा हैं । (अहोलोए विसेसाहिया) अधोलोक में विशेषाधिक हैं।
टीकार्थ-अब सामान्यतः एकेन्द्रिय, अपर्याप्त एकेन्द्रिय और पर्याप्त एकेन्द्रिय जीवों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करते हैं-क्षेत्र के अनुसार प्ररूपणा करने पर सब से कम एक एकेन्द्रिय जीय ऊर्चलोक गुणा) त्रैशायमा असन्यात छ. (उडढलोए असंखिज्जगुणा) Busi मस ज्यात छ. (अहोलोए विसेसाहिया) विशेषाधि४ छे.
(खेत्ताणुवाएण) क्षेत्रनी अपेक्षाथी (सव्वत्थोवा एगिदिया जीवा पज्जत्तगा उड्ढलोयतिरियलोए) सौथी मछ। मेहेन्द्रिय ७५ पर्याप्त aas तिय:दोभा छे. (अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया) माता-तियोमा विशेषाधि छ. (तिरियलोए असंखेज्जगुणा) तिय सोमा मसभ्यातमा छ (तेलोक्के असंखेज्जगुणा) टायमा २सयातमा छ. (उड्ढलोए असंखिज्जगुणा) Aqोभा अध्यात छ, (अहोलोए विसेसाहिया) अधोसामा विशेषाधि छ. ॥३२॥
ટીકાઈ–હવે સામાન્ય રીતે એકેન્દ્રિય, અપર્યાપ્ત એકેન્દ્રિય અને પર્યાપ્ત એકેન્દ્રિય જીવોના અલ્પ બહુપણાની પ્રરૂપણ કરવામાં આવે છે.
ક્ષેત્રની અનુસાર પ્રરૂપણ કરવામાં આવે તે ઉદ્ઘલેકમાં અને તિર્યકप्र० ३९
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨