Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०६ मनुष्याणां स्थितिनिरूपणम्
४९३ छाया-मनुष्याणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पल्योपमानि, अपर्याप्तमनुष्याणां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तमनुष्याणां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, संमूच्छिममनुष्याणां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, गर्भव्युत्क्रान्तिमनुष्याणां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि मुहुत्त, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की (अपज्जत्तयमणुस्साणे पुच्छा ?) अपर्याप्तक मनुष्यों की पृच्छा ? स्थिति कितनी है ? (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त (पज्जत्त मणुस्साणं पुच्छा ?) पर्याप्त मनुष्यों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम तीन पल्योपम । ___ (संमुच्छिम मणुस्साणं पुच्छा ?) संमूर्छिम मनुष्यों की स्थिति कितनी? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त __(गम्भवक्कंतिय मणुस्साणं पुच्छा ?) गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम मुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) धन्य मन्तभुत भने अष्ट अy पक्ष्या५मनी (अपज्जत्तय मणुस्साणं पुच्छा) ५५४४ मनुष्यानी स्थिति डेसी छे ? (जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) धन्य ५५ मन्तभुत कृष्ट ५ मन्तभुत (पज्जत्तमणुस्साण पुच्छा ?) पर्याप्त मनुष्यानी स्थिति
सी गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तणाई) ४५न्य सन्तत; उत्कृष्ट मन्तभुत माछा पक्ष्या५म
(समुच्छिम मणुस्साणं पुच्छा ?) सभूछि म मनुष्योनी स्थिति थी ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं) જઘન્ય પણ અન્તર્મુહૂર્ત ઉત્કૃષ્ટ પણ અન્તર્મુહૂર્ત
(गब्भवक्कंतिय मणुस्साणं पुच्छा ?) Mr मनुष्यानी स्थिति सी ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨