Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०३ पृथिवीकायादीनां स्थितिनिरूपणम् ४६५ अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन द्वाविंशतिः वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, सूक्ष्मपृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथिवीकायिकानाम् पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूतम्, पर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, बादरपृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तपतक पृथिवीकायिकों के विषय में पृच्छा-प्रश्न ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की।
(सुहुम पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (अपज्जत्तय सुहुम पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तय सुहुम पुढविकाइयाणे पुच्छा ?) पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की स्थिति के विषय में पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (बायरपुढविकाइयाणं पुच्छा ?) वादर पृथिवीकायिकों की स्थिति की ५५ मत इतनी (पज्जत्तय पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पर्याH४ पृथ्वीयाना विषयमा २७।-प्रल ? (गोयमा !) गौतम! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तणाई) धन्य मन्तभुतानी, Gट मन्ततः કમ બાવીસ હજારવર્ષની
(सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा ?) सूक्ष्मपृथ्वीविडीन विषयमा छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) धन्य ५५ भने भने उत्कृष्ट ५ मन्तभुतानी (अपज्जत्तयमुहुम पुढविकाइयाणं पुच्छा) भर्यात सूक्ष्म वीयिटीना विषयमा प्रश्न छ. (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) ४धन्यथा मन अष्टथी मत इतनी छे. (पज्जत्तयसुहुम पुढवि काइयाणं पुच्छा ?) ५४ सूक्ष्म पृथ्वीयिनी स्थितिना विषयमा छ ? (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं) જઘન્ય સ્થિતિ પણ અંતમુહૂર્ત ઉત્કૃષ્ટ પણ અન્તર્મુહુર્તાની છે.
(बायरपुढविकाइयाणं पुच्छा ?) मा४२ पृथ्थीयिनी स्थितिनी छ। प्र० ५९
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨