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अभिनव प्राकृत व्याकरण
दुरुत्तरं दुरुत्तरम् - दुर् के र् का लोप नहीं हुआ
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दुरागदं दुरागतम् दुरवगाहं 4 दुरवगाहम् विशेष - कहीं कहीं निर के रेफ का लोप देखा जाता है । जैसे
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अन्तोवरि < अन्तर् + उपरि – यहाँ अन्तर् के रेफ का लोप हुआ है । णिउक्कण्ठं < निरुत्कण्ठम् - निर् के रेफ का लोप हुआ है ।
( ७ ) विद्युत् शब्द को छोड़कर स्त्रीलिंग में वर्तमान सभी व्यंजनान्त शब्दों के अन्त्य व्यञ्जन का आत्व होता है । ईषत्स्पृष्टतर होनेवाली यश्रुति के अनुसार आ के स्थान पर या भी हो जाता है । जैसे- सरिया, सरिअ सरित् — अन्तिम हलन्त व्यञ्जन तू का लोप न होकर उसके स्थान पर आ हो गया है ।
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संपया, संपआ < संपद्— अन्तिम हलन्त व्यज्ञ्जन का लोप न होकर उसके स्थान पर आ हो गया है ।
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वाया, वा वाक्
अच्छरा < अप्सरस्
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पडिवया, पडिवप्रतिपद् वाआच्छलंद वाक्छलम् - क् के स्थान पर आ हुआ है। वाआविवो वाग्विभवः - ग् के स्थान पर आ हुआ है । विशेष - विद्युत् शब्द का प्राकृत में विज्जू होता है ।
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( ८ ) स्त्रीलिंग में वर्तमान रेफान्त शब्दों के अन्तिम र् को रा आदेश होता है। जैसे—
गिरा < गिर् (गी: ) इलन्त व्यंजन र् के स्थान पर रा हो गया है ।
थुरा-धुर् (धूः ) पुरापुर (पू) - महुअमर गिरा मधूकमथुर गिरः
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( ९ ) क्षुध् शब्द के अन्त्य व्यंजन का 'हा' आदेश होता है ।
यथा
१. क्वचिद् भवत्यपि । १ । १४ की वृत्ति हे० ।
२. स्त्रियामादविद्युतः ८।१।१५. स्त्रियां वर्तमानस्य शब्दस्यान्त्यव्यञ्जनस्य प्रात्वं भवति विद्युच्छ्न्दं वर्जयित्वा । ॰ ।
३. बहुलाधिकाराद् ईषत्स्पृष्टतरयश्रुतिरपि - ८ । १ । १५ की वृत्ति । हे० ।
४. अविद्युत इति किम् - उपर्युक्त सूत्र की वृत्ति ।
५. रोरा ८।१।१६. स्त्रियां वर्तमानस्यान्त्यस्य रेफस्य रा इत्यादेशो भवति । श्रात्त्वापवादः । हे०
६. क्षुधो हा ८१ । १७. क्षुध् शब्दस्यान्त्यव्यञ्जनस्य हादेशो भवति । हे० ।