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अभिनव प्राकृत-व्याकरण वुन्द्र,वन्द्र < वन्द्रं—अकार के स्थान पर न ( प ) सहित उत्व हुआ है।
खुड्डिओ, खण्डिओ<खण्डित:- -, , (२८) गवय शब्द में वकार के प्रकार के स्थान पर उत्व होता है। जैसेगउओ, गउआ< गवयः।
( २६ ) प्रथम शब्द में पकार और थकार के स्थान पर युगपत् और क्रमश: उकार होता है । जैसे
पुढुमं, पुढम, पदुमं, पढम< प्रथमम् (३०) अभिज्ञ आदि शब्दों में पत्र करने पर ज्ञ के आकार का उत्व होता है। जैसे
अहिण्णू < अभिज्ञः सवण्ण र सर्वज्ञः-शौरसेनी में सव्वगो और पैशाची में सव्वनो।
आगमण्णू < प्रागमज्ञः। विशेष-स्वाभाव में अहिज्जो< अभिज्ञः, सव्वज्जो सर्वज्ञ होते हैं । ( ३१ ) शय्या आदि शब्दों में आदि अकार का एकार आदेश होता है। जैसे—सेज्जा< शय्या प्रकार का एकार और य्या का ज्जा ।
संदेरं< सुन्दरम्-दकारोत्तर अकार का एकार । उक्केरो< उत्कर:-त का लोप और क को द्वित्व तथा अ को एकार । तेरहो< योदश:- त के र का लोप, अकार को एकार तथा दश के स्थान में रहा। अच्छेरं< आश्चर्यम् –पूर्ववर्ती आ को ह्रस्व कर दिया और श्च के अ को एकार तथा श्च के स्थान पर उछ । पेरंतं< पर्यन्तम्-प्रकार को एकार । वेल्ली< वल्लि:- ,
१. गवये वः ८।१।५४. गवयशब्दे वकाराकरस्य उत्वं भवति । हे। २. प्रथमे पथोर्वा ८११५५. प्रथमशब्दे पकारथकारयोरकारस्य युगपत् क्रमेण च उकारो
वा भवति । हे। ३. ज्ञो णत्वेभिज्ञादो ८।१।१६. अभिज्ञ एवं प्रकारेषु ज्ञस्य गत्वे कृते ज्ञस्यैव अत
उत्वं भवति । हे। ४. एच्छय्यादौ ८।१।५७. शय्यादिषु आदेरस्य एत्वं भवति । हे० । शय्यात्रयोदशाश्चयं
पर्यन्तोत्करवल्लयः । सौन्दयं चेति शय्यादिगणः शेषस्तु पूर्ववत् ।