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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
पयावई ८ प्रजापति:--ज का लोप और अवशेष आ के स्थान में या, ५ का व और त का लोप, दीर्घ।
रसायलंदरसातलम् –त का लोप और अवशेष अ को य । पायालं < पातालम् - त का लोप और अवशेष आ को या ।
(१०३ ) असवर्ण से पर में अनादि प का लोप लुक नहीं होता, बल्कि पकार को वकार होता है। उदाहरण
उवसग्गो< उपसर्ग:-का व, रेफ का लोप और ग को द्वित्व । कवालो < कपाल:—यहां प का लोप नहीं हुआ, उसके स्थान पर व हुआ है। उल्लाओ< उल्लाप:कवोलो< कपोल:महिवालो<महिपाल:उवमा< उपमापावं< पापम्-५ का व हुआ है। सवहो < शपथः-५ का व तथा थ का ह हुआ है।
सावो<शाप:–प का व हुआ है। विशेष—(क ) संयुक्त होने पर प का व नहीं होता । यथा
विप्पोद विप्रः-प्र में + + अ का संयोग है अत: रेफ का लोप और प को द्वित्व।
सप्पो< सर्पः-रेफ का लोप और प को द्वित्व। ( ख ) आदिस्थ होने पर प का न तो लोप होता है और न उसके स्थान में व ही होता है। यथा
पई पति:--त का लोप तथा इकार को दीर्घ ।। पंडिओ< पण्डितः-त का लोप और विसर्ग को ओत्व । ( १०४ ) आपीड शब्द में पकार को म होता है। यथाआमेलो आपीड:-4 का म और ड को ल हुआ है।
( १०६ ) स्वर से पर में रहनेवाले असंयुक्त और अनादि ख, घ, थ, ध और भ वर्गों के स्थान में प्राय: ह आदेश होता है। वास्तविकता यह है कि इन व्यंजनों में ह संयुक्त है। जैसे
ख = क् + ह, घ = ग+ ह्, थ् = त् + ह्, ध = द् + ह्, फ= प् + ह्, भ = + ह। अतः उक्त व्यजनों में विजातीय का लोप होकर ह शेष रह जाता है। उदाहरण
१. पो वः २।१५. वर० । २. आपीडे मः २।१६. वर० । ३. ख-च-थ-ध-भाम् ८।१।१८७. हे० ।