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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
२१५ णि, नि<नि-अन्दर, नीचे—दुट्टे णियमइ (दुष्टान् नियमति)-दुष्टों को अधीन या नीचे करता है; णिवेसो (निवेश:), सन्निवेसो (सन्निवेश:) निविसइ (निविशते)।
__ पडि-पति परि< प्रति-ओर, उलटा-पडिआरो (प्रतिकारः) पडिमा (प्रतिमा), पतिट्ठा (प्रतिष्ठा), परिट्टा (प्रतिष्ठा)।
परि, पलि< परि-चारों ओर-सुजो पुहवीं परिगमइ-सूर्य पृथ्वी के चारों घूमता है। परिवुडो (परिवृत्त:), पलिहो (परिधः)।
इ, पि, वि, अवि अपि-भी, निकट-देवदत्तो वि णागओ--देवदत्त भी नहीं आया। किमवि (किमपि), कोइ, कोवि (कोऽपि)।
ऊ, ओ उवर उप-निकट, उवासणा (उपासना)-निकट बैठना, प्रार्थना; उझायो, ओज्झायो, उवज्झायो (उपाध्याय); .
आ< आङ --तक-दिलीवो आसमुदं पुहवीए पइ आसि-दिलीप समुद्रपर्यन्त पृथ्वी का राजा था; आवासो (आवास:), आयन्तो (आचान्तः)।
क्रियाविशेषण क्रियाविशेषण अव्यय प्राकृत में संस्कृत के समान कई प्रकार के होते हैं । क्रियाविशेषणों की संख्या प्राकृत में संस्कृत से भी अधिक है। नीचे अकारादि क्रम से प्रमुख क्रियाविशेषणों की तालिका दी जाती है।
अइ< अति-अतिशय, अइ< अयि-संभावना अईव< अतीव-विशेष, अधिकता, अओ< अत:-इसलिए
बहुत अग्गओर अग्रत:--आगे अग्गे<अग्रे-पहले अज्ज< अद्य-आज
अण ( नञ् )< अन-निषेधार्थक अण्णमएणं (अन्योन्यम्)< अण्णहा < अन्यथा-विपरीत
___अन्योन्यम्-आपस में अणंतरं< अनन्तरम् -पश्चात् , अत्थं अस्तम्-अदर्शन, अस्त-छिपना
विना अस्थि अस्ति–सत्तासूचक, अत्थर अस्तु-विधिसूचक, निषेधसूचक
अस्तित्वसूचक . - - अंतो< अन्तर-भीतर
अंतरं< अन्तरम्-अन्तर अप्पणो आत्मन:-अपना अपरज्जु< अपरेयुः-दूसरे दिन