________________
अभिनव प्राकृत-व्याकरण . फुट-फुटइ-फूटता है। यहां ट को द्वित्व हुआ है। सुद-तुट्टइ-तोड़ता है। -- - लग-लग्गइ-लगता है। ग को द्वित्व हुआ है। कुप्-कुप्पइ-कुपित होता है। प को द्वित्व हुआ है।
(६३ ) अपभ्रंश में प्राकृत के समान संस्कृत के घ के स्थान पर ज्ज होता है। यथा
संपज्जइ ८ संपद्यते-संपादित होता है। खिजइ खिद्यते-खिन्न होता है ।
(६४ ) अपभ्रंश में धातु से वर्तमान काल के प्रथमपुरुष बहुवचन में विकल्प से हिं प्रत्यय जोड़ा जाता है।' यथा
सहर्हि शोभन्ते। करहि < कुरुतः।
(६५) अपभ्रंश में धातु से वर्तमान काल के मध्यम पुरुष एकवचन में विकल्प से हि आदेश होता है। यथा
रुाहिद रोदिषि-हि प्रत्यय जोड़ा गया है। लहहि र लभसे
(६६ ) अपभ्रंश में धातु से वर्तमान के मध्यम पुरुष बहुवचन में विकल्प से हु आदेश होता है। यथा___ इच्छहु < इच्छथ-हु प्रत्यय जोड़ा गया है।
( ६७ ) अपभ्रंश में धातु से वर्तमान काल उत्तमपुरुष एकवचन में विकल्प से उं प्रत्यय जोड़ा जाता है। यथा___ कड़ढउं< कर्षामि-उँ प्रत्यय जोड़ा है। विकल्पानाव में-कड्ढामि ।
(६८) अपभ्रंश में धातु से पर में आनेवाले वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से हुं आदेश होता है । यथा
लहुई < लभाम); जाहुं < यामः, वलाहुं < वलामहे ।।
(६६) अपभ्रंश में हि और स्व के स्थान पर इ, उ और ए ये तीनों आदेश होते हैं। यथा
सुमरि < स्मर; मेलिल < मुच्च; विलम्बुद विलम्बस्व; करे कुरु ।
(७० ) अपभ्रंश में भविष्यकाल में स्य के स्थान में स विकल्प से आदेश होता है। यथा
होसइ, पक्ष में होहिइ < भविष्यति ।
१. त्यादेराद्यवयस्य सम्बन्धिनो हिं न वा ८।४।३८२