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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
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बे दोसडा< द्वौ दोषौ-यहां अड प्रत्यय हुआ है। कुहुल्ली८ कुण्डलिनी-दुल्ल प्रत्यय हुआ है। हिअड-अड + अ प्रत्यय जोड़ा गया है। धुदुल्लउ-दुल्ल + अ " " बलुल्लडा-दुल्ल + अड, गोरड + ई-गोरडी-स्त्रीलिंग बनाने के लिए ई प्रत्यय जोड़ा है। । ६८ ) अपभ्रंश में भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए त्व और तल प्रत्यय के
पण और तणु प्रत्य जोड़े जाते हैं । त्तणु का तण भी हो जाता है। यथाबडप्पणु, बडुत्तणु, बड्डत्तणहो महत्त्वम्-बड़प्पन ।
स्त्रीलिंग बनाने के लिए अपभ्रंश में आ और ई प्रत्यय में से कोई एक प्रत्यय जोड़ा जाता है। यथागोरडी, धूलडिआ।
क्रियारूप ( ५९ ) अपभ्रंश में संस्कृत की व्यज्जनान्त धातु में अ प्रत्यय जोड़ कर रूप बनाये जाते हैं। यथा
कह + अ + इ = कहइ-अ विकरण के रूप में जोड़ा गया है। पढ + अ + ई = पढइ-
, (६० ) उकारान्त धातुओं को उव, ईकारान्त को ए और अकारान्त धातुओं में क स्वर को अर होता है। कुछ धातुओं में उपान्त्य स्वर को दीर्घ भी हो जाता है। यथा
सु-सुवइ-सु = स + उव +इ=सुवइ-सोता है । नी-नेइ-न + ए + इ = नेइ-ले जाता है। क-करह- + अर् + इ = करइ-करता है। है-हरइ-हू + अर + इ = हरइ-हरता है। तुष्--तूसइ-उपान्त्य स्वर उकार को दीर्घ हुआ है। पुष-पूसइ- , ( ६१ ) अपभ्रंश में कुछ धातुओं में एक स्वर का दूसरा स्वर हो जाता है । यथाचिन-चुनइ-चिनइ-चुनता है। इकार को उकार हुआ है।
( ६२ ) अपभ्रंश की कुछ धातुओं में धातु के अन्तिम व्यञ्जन को द्वित्व हो जाता है। यथा
१. स्व-तलोः प्पण: ८।४४४३७ ।