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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
(५) बहुपद बहुब्रीहि ( ७ ) साधनदशा में दो से अधिक पदों का जो समास होता है, उसे बहुपद बहुव्रीहि कहते हैं । यथा
धुओ सव्यो किलेसो जस्स सो=धुअसव्यकिलेसो जिणो ( थुतसर्वक्लेशो जिनः )।
(६) न , न बहुब्रीहि ( ८ ) निषेध के अर्थवाचक अ और अण के साथ जो बहुव्रीहि समास होता है, उसे नज या न बहुव्रीहि कहते हैं। यथा
न अस्थि भयं जस्स सो = अभयो ( अभय: ); न अस्थि पुत्तो जस्स सो = अपुत्तो ( अपुत्रः ); न अत्थि णाहो जस्स सो=अणाहो ( अनाथ: ), न अस्थि पच्छिमो जस्स सो = अपच्छिमो ( अपश्चिम: ); न अस्थि उयरं जीए सा= अणुयरा ( अनुदरा कन्या ); नत्थि उज्जमो जस्स सो = अणुजमो पुरिसो ( अनुद्यमः पुरुष: ); नत्थि अवज्ज जस्स सो = अणवजो मुणी ( अनवद्यो मुनिः )।
(७) सहपूर्व बहुब्रीहि (९) सह अव्यय जिस बहुव्रीहि समास में हो, उसे सहपूर्वपद बहुव्रीहि कहते हैं। सह अव्यय का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है तथा आशीर्वाद अर्थ को छोड़ शेष अर्थों में सह स्थान पर स आदेश होता है। यथा-पुत्रेण सह = सपुत्तो राया ( सपुत्र: राजा ); सीसेण सह = ससीसो आयरिओ ( सशिष्य: आचार्यः ); पुण्णेण सह = सपुण्णो लोयो ( सपुण्यः लोकः ); पावेण सह = सपावो रक्खसो (सपाप: राक्षस: ); कम्मणा सह = सकम्मो नरो ( सकर्मा नरः ); फलेण सह = सफलं ( सफलम् ); मूलेण सह = समूलं ( समूलं ) चेलेण सह = सचेलं पहाणं ( सचैलं स्नानम् ); कलत्तेण सह = सकलत्तो नरो ( सकलनं )।
(८) प्रादि बहुव्रीहि (१०) प, नि, वि, अव, अइ, परि आदि उपसर्गो के साथ जो बहुव्रीहि समास होता है, उसे प्रादि बहुव्रीहि कहते हैं। यथा
प-पगिढ़ पुण्णं जस्स सो = पपुण्णो जणो ( प्रपुण्यः जनः )। नि-निग्गया लज्जा जस्स सो = निल्लज्जो ( णिर्लज: )। वि-विगओ धवो जाए सा = विहवा ( विधवा )। अव-अवगतं रूवं जस्स सो = अवरुवो ( अपरूप: )। अइ-अइवतो मग्गो जेण सो = अइमग्गो रहो ( अतिमार्गः रथ: )। परि-परिअअं जलं जाए सा = परिजला परिहा ( परिजला परिखा )। निर-निग्गआ दया जस्स सो = नियो जणो ( निर्दयो जनः )।