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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
छक्क
जत्ता
णग
णगत्तण
तइभ
सहाअ
तच्छ--
सिमिण
सा
माहण जाया
मिलक्खू , मेच्छ मिलिच्छ णिगण, णिगिण
वग्गू
वाया णिगिणिण
वाहणा (उपानह) उवाणा तच्च (तृतीय)
सहेज्ज तच्च (तथ्य)
सीआण, सुसाण मसाण तेगिच्छा
चिइच्छा सुमिण दुवालसंग
वारसंग सुहम, सुहुम सह दोच्च
दुइ सोहि
सुद्धि दुवालस, बारस; तेरस, अउणावीसइ, बत्तीस, पणतीस, इगयाल, तेयालीस पणयाल, अढयाल, एगट्टि, बावट्टि, तेवटि, छावट्टि, अढसट्टि, अउणत्तरि, बाबत्तरि, पण्णत्तरि, सत्तहत्तरि, तेयासी, छलसीइ, बाणउइ आदि संख्या-शब्दों के रूप आर्धमागधी में महाराष्ट्री से भिन्न हैं।
शब्दरूप ( २३ ) अर्धमागधी में पुल्लिङ्गः अकारान्त शब्द के प्रथमा एकवचन में प्राय: सर्वत्र ए और क्वचित् ओ होता है ।
( २४ ) सप्तमी एकवचन में स्सि प्रत्यय होता है। ( २५ ) चतुर्थी के एक वचन में आये या आते प्रत्यय जोड़े जाते हैं।
( २६ ) अर्धमागधी में कुछ शब्दों में तृतीया के एकवचन में सा प्रत्यय जोड़ा जाता है । यथा
मणला, वयसा, कायसा, जोगसा आदि। महाराष्ट्री में मणेण, वएण आदि रूप बनते हैं।
(२७ ) कम्म और धम्म शब्द के तृतीया के एकवचन में पालि की तरह कम्मुणा और धम्मुणा रूप होते हैं। महाराष्ट्री में कम्मेण और धम्मेण रूप बनते हैं।
( २८ ) अर्धमागधी में तत् शब्द के पञ्चमी के एकवचन में तेब्भो रूप भी पाया जाता है।
(२९) युषमद् शब्द के षष्ठी के एकवचन में तव और अस्मदू शब्द के षष्ठी के बहुवचन में अस्माकं रूप पाये जाते हैं । ये रूप महाराष्ट्री में नहीं होते हैं।
अर्धमागधी के विभक्ति प्रत्यय एकवचन
बहुवचन प्र० ए, ओ द्वि० अनुस्वार
आ