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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
४५३ मथुलोर मधुरो-ध के स्थान थ और रेफ को ल । थालाद्धारा-ध के स्थान में थ और रेफ को ल। पाटपोर बाडवः-ब के स्थान में प और ड को ट। पालोबाल:-ब के स्थान पर प। लफसोद रभसः-र के स्थान पर ल और भ के स्थान पर फ। लंफादरंभा- , फवो भवः-भ के स्थान पर फ। फकवती भगवती-भ के स्थान पर फ और ग को क । पनमथ प्रणमत- के स्थान में न और त को थ। नखतप्पनेसु नखदपणेषु-दर्प के स्थान पर तप्प और ण को न ।
चलनग्ग< चरणाग्र-र को ल, " को न और संयुक्त रेफ का लोप और ग को द्वित्व।
एकातस< एकादश-द को त और श को स। तनुथलं - तनुधरं-ध के स्थान पर थ और र को ल। पातुक्खेवेन पादोत्क्षेपेण-द को त, क्ष के स्थान पर क्ख । वसुथा< वसुधा-ध को थ। नमथ < नमत-त को थ । ( ३ ) चूलिका पैशाची में आदि अक्षरों में उक्त नियम लागू नहीं होता। यथागती गति:-ग के स्थान पर हेमचन्द्र के मत से क नहीं हुआ। धम्मो धर्म:-ध के स्थान पर थ नहीं हुआ। जीमूतोदजीमूतः-ज के स्थान पर च नहीं हुआ। डमरुको डमरुक:-ड के स्थान पर ट नहीं हुआ। नियोजितं नियोजितम्-युज धातु में भी उक्त नियम नहीं लगा। घनो< घनः-घ के स्थान पर ख नहीं हुआ। जनोरजन:-ज के स्थान पर च नहीं हुआ। झल्लरी< झल्लरी-झ के स्थान पर छ नहीं हुआ।
( ४ ) शब्दरूप और धातुरूप चूलिका पैशाची में पैशाची के समान ही होते हैं, परन्तु वर्णपरिवर्तन सम्बन्धी नियमों का प्रयोग कर लेना आवश्यक है। यथा
फोति < भवति-भ को फ हुआ है। फरते < भवतेफवति भवति- , फोइय्य < भोइय्य- ,