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अभिनव प्राकृत व्याकरण
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आचार्य हेमचन्द्र ने सामान्य अपभ्रंश के नाम से अनुशासनसम्बन्धी नियम लिखे हैं । अतः इस प्रकरण में मी सामान्य अपभ्रंश के अनुशासन सम्बन्धी नियम दिये जाते हैं। ( १ ) अपभ्रंश में अ, इ, उ, ऍ और ओ ये पाँच हस्व स्वर और आ, ई, ऊ, ए और ओ ये पांच दीर्घ स्वर माने गये हैं । ऋ, ऌ, ऐ और औ का अभाव है । ( २ ) ऋ स्वर के स्थान पर अपभ्रंश में अ, इ, उ, आ, ए, और रि आदेश हो जाता है। कुछ स्थानों में ऋ ज्यों का त्यों भी पाया जाता है । यथा
ऋ - अ
तणुतृण, पट्टि पृष्ठ, कच्चु कृत्य
ऋ =
आ
ऋ = इ
ऋ = उ
ऋ = ए
ऋ = रि, री
( ३ ) ऌ के स्थान पर अपभ्रंश में इ और इलि आदेश होता है । यथाकिन्नो, किलिन्नो क्ऌन्न ।
ऐ = ए
ऐ = अइ औ = ओ'
औ = ओ
( ४ ) ऐ के स्थान पर अपभ्रंश में ऍ, ए और अइ तथा औ के स्थान पर ओ, ओ और अउ आदेश होते हैं । यथा
ऐ = ऍ
काच्चु < कृत्य;
तिणुतृण, पिडि पृष्ठ
औ
पुट्ट पृष्ठ
गेह गृह
रिणऋण रिसोऋषभ; रीछ ऋच्छ
= अउ
यौवन
पर पौर, गउरी गौरी
( ५ ) अपभ्रंश में पद के अन्त में स्थित उं, हुँ, हिं और हं का भी लघु-हस्व उच्चारण होता है । यथा—
(क) अन्नु जु तुच्छउं ते धनहे !
(ख) दइवु घटावइ वणि तरहुँ । ( ग ) तणहुँ तइज्जी भंगि नवि ।
अवरेकअपरैक
देवदैव
दइदैव
गोरी दगौरी
सैंहली । हिंयुक्ता कालिङ्गी । प्राच्या तद्देशीयभाषाढ्या । ज (भ) ट्टादिबहुला प्राभीरी । वर्णंविपर्ययात् कार्णाटी । मध्यदेशीया तद्देशीयाच्या । संस्कृतान्या च गौर्जरी । चकारात् पूर्वोक्तढकभाषाग्रहणम् । रत (ल) हभां व्यत्ययेन पाश्चात्त्या । रेफव्यत्ययेन द्राविडी । ढकारबहुला वैतालिकी । एत्रो बहुला की ।