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चूलिका पैशाची यद्यपि वररुचि आदि वैयाकरणों ने पैशाची के लक्षणों के अन्तर्गत ही चूलिका पैशाची का अनुशासन बताया है। पर हेमचन्द्र और षडूभाषाचन्द्रिका के कर्ता पं० लक्ष्मीधर ने इस भाषा का भी स्वतन्त्र अस्तित्व मानकर इसकी विशेषताओं का निर्देश किया है । चूलिका पैशाची के कुछ उदाहरण हेमचन्द्र के कुमारपाल और जयसिंह सूरि के हम्मीरमर्दन नामक नाटक तथा पड़भाषा स्तोत्रों में पाये जाते हैं। यह सत्य है कि चूलिका पैशाची पैशाची का ही एक भेद है। इसमें पैशाची की अपेक्षा अधिक विशेषताएँ दृष्टिगोचर नहीं होतीं। ध्वनि परिवर्तन सम्बन्धी निम्न विशेषताएँ हैं।
(१) चूलिका पैशाची में र के स्थान में विकल्प से ल होता है। यथागोली< गोरी–र के स्थान पर ल । चलन < चरण-र के स्थान पर ल और ण को न । लुद्ध र रुद्र-र के स्थान पर ल, संयुक्त रेफ का लोप और द को द्वित्व । लाचा राजा-र को ल और ज को च। लामो रामो-र के स्थान पर ल। हलंद हरं-र के स्थान पर ल।
( २ ) चूलिका पैशाची में वर्ग के तृतीय और चतुर्थ अक्षरों के स्थान पर प्रथम और द्वितीय अक्षर होते हैं। यथा
मक्कनो< मार्गण:- संयुक्त रेफ का लोप और ग के स्थान में क तथा क को द्वित्व और ण को न।
नकोर नगः-ग के स्थान पर क । मेखो< मेघः-घ के स्थान पर ख । वखोर व्याघ्रः-संयुक्त य का लोप तथा संयुक्त रेफ का लोप और को ख । चीमूतो< जीमूत:-ज के स्थान में च । छलोर झर:-झ के स्थान पर छ और रेफ को ल। तटाकं ८ तडार्क-ड के स्थान में ट। टमलुको< डमरुकः-ड को ट और रु के स्थान में ल । काढं < गाढम्-ग के स्थान में क। ठक्का< ढक्का-ढ के स्थान में ठ । मतनो मदनः-द के स्थान में त। तामोतलोर दामोदरः-द के स्थान में त और रेफ को ल।