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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
सलिळं 4 सलिलम् - ल के स्थान पर ळ हुआ है ।
कमळं कमलम् —
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( ८ ) पैशाची श और ष के स्थान स आदेश होता हैं ।' यथासोभति शोभते - श के स्थान पर स हुआ
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सोभनं शोभनं
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ससी शशी
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विसमो विषमः - मूर्धन्य ष के स्थान पर स हुआ है ।
विसानो विषाणः
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( ९ ) पैशाची में हृदय शब्द के यकार के स्थान में पकार हो जाता है । यथाहितपर्क हृदयकम् – द के स्थान पर त और य के स्थान प आदेश होता है । ( १० ) पैशाची में टु के स्थान पर विकल्प से तु आदेश होता है । यथाकुतुम्बकं कुटुंबकं 4 कुटुम्बकम् ।
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( ११ ) पैशाची में कही-कहीं र्य, स्न और ष्ट के स्थान में रिय, सिन और सट आदेश होते हैं। यथा
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भारिया भार्या - स्वरभक्ति के नियमानुसार र और य का पृथक्करण होकर इत्व हो गया है ।
सिनातं स्नातम् -
कसटं कष्टम् -
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सनानं <स्नानम् – स्वरभक्ति के नियमानुसार स और न का पृथक्करण । सनेहो स्नेह:
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( १२ ) पैशाची में यादृश, तादृश आदि के दृ के स्थान पर ति आदेश होता है । यथा
या तिसादृशः ह के स्थान पर ति और श को स ।
तातिसो < तादृश:--
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भवातिलो भवादृशः -- अज्ञातिसो < अन्यादृशः न्य के स्थान पर ञ्ज और ह कोति । युम्हातिसो युष्माश: - ष्म के स्थान पर म्ह और ड के स्थान पर ति । अम्हातिसो अस्मादृशः स्म ,
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( १३ ) पैशाची में शौरसेनी के ज के स्थान में च्च आदेश होता है । यथाकच्चं । कज्जं कार्यम् – शौरसेनी के ज्ज के स्थान पर च ।
१. श-षोः सः ८।४।३०६ ।
२. हृदये यस्य पः ८|४|३१०