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अभिनव प्राकृत-व्याकरण पडिहारीए इयं—पाडिहेरं - प्रातिहार्यम्-पडिहारी + अण-पडिहारी शब्द में हा के स्थान पर हे आदेश हुआ है और रकारोत्तर इकार का लोप ।
मम + इय-ममाई, ममाइए<ममत्वी, ममायितः ।। ( ३३ ) पर शब्द से सम्बन्ध बतलाने के लिए कीय प्रत्यय होता है। यथापर + कीय-परकीयं । ( ३४ ) राय शब्द से सम्बन्ध बसलाने के लिए पण प्रत्यय होता है । यथाराय + bण-राइण्णं, रायणं-य कार के स्थान पर इकार । (३५) कम्म शब्द से सम्बन्ध बताने के लिए ण और अ प्रत्यय जोड़े जाते हैं।
कम्म + ण = कम्मणं< कार्मणम् , कम्म + अ = कम्मअं भवार्थक प्रत्यय
( ३६ ) भवार्थ में इम, इल्ल, इज, इय, इक, क आदि प्रत्यय जोड़े होते हैं ।
अभंतरे भवो-अभंतरिए, अब्भंतरगो< आभ्यन्तरक: - अभंतर + इय = अभंतरिए, विकल्पाभाव में अब्भंतर + क (ग) = अब्भंतरगो । अवरिल्लं <आपरम्
___ पुरा भवं-पुरच्छिमं, पुरथिमंदपौरस्त्यम्-पुरस्थ + इम = पुरथिम, पुरस्थ के स्थान पर पुरच्छ होने से पुरच्छिमं रूप बनता है। अन्ते भवं-अन्तिम-अन्त + इम = अन्तिमं ।
___ वरि भवं-उवरिल्लं-उवर + इल्म = उवरिल्लं <उपरितनं; उबरि + इम = उवरिमं ।
भंडारे अहिगडो-भाण्डारिए < भाण्डारिकः -भण्डार + इयण (इए) = भाण्डारिए । स्वार्थिक
(३७) स्वार्थ बतलाने के लिए अणु , इक, इज, इजण, इय, इयण , इम, इल्ल, क और मेत्त प्रत्यय होते हैं ।
जायमेत्तं, जायमित्तं < जातमात्रम्-जाय + मेत्त = जायमेत्तं—एको इत्व होने से जायमित्तं रूप बनता है।
णियडिल्लया निकृतिमत्ता-णियड + इल्ल = णियडिल्ल स्त्रीलिङ्गवाची या प्रत्यय जोड़ने से णियडिल्लया। उत्तर + इल्लं - उत्तरिल्लं < औत्तरेयम्; आण + इल्ल + इथ = आणिल्लियं<आनीतकम् ; छ + च्च = छच्चं, छ + छलं < षटकम् ।
(३८) पोत्त शब्द से उल्ल और बद्ध तथा मुक्त शब्द से स्वार्थिक इल्लग प्रत्यय होता है। यथा
पोत्त + उल्ल = पोत्तुल्लओरपौत्रकः; बद्ध + इल्लग = बद्धेल्लगोवद्धकः; मुक्क + इल्लग = मुक्केल्लगोद मुत्तकः ।