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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
( २ ) समाहार अर्थ में जो द्विगु समास होता है, वह एकवद्भावी कहलाता है और उसमें सदा नपुंसकलिंग और एकवचन होता है । यथा
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नवहं तत्ताणं समाहारो = नवतत्तं ( नवतन्त्रम् ), चउन्हं कसायाणं समूहो = च उक्सायं (चतुष्कषायम् ), तिन्हं लोगाणं समूहो = तिलोयं ( त्रिलोकम् ), तिन्हं लोआणं समूहो = तिलोई ( त्रिलोकी )
( ३ ) प्राकृत में कोई-कोई समाहारद्विगु पुल्लिंग भी हो जाता है । यथातिन्हं विप्पाणं समाहारो त्ति = तिवियप्पो ( त्रिविकल्पम् ) ।
( ४ ) संज्ञा में जो द्विगु होता है, वह अनेकवद्भावी कहलाता है और इसमें वचन और लिंग का कोई नियम नहीं रहता है । यथा
तिणि लोया = तिलोया ( त्रिलोका: ), चउरो दिसाओ = चउदिसा ( चतुर्दिश : ) ।
(३) बहुव्रीहि (बहुवीहि)
( १ ) जब समास में आये हुए दो या अधिक पद किसी अन्य शब्द के विशेषण हों तो उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। यथा
पीअं अंबरं जस्स सो = पीआंबरो (पीताम्बरः ) । इस समास के मुख्य दो भेद हैं- (१) समानाधिकरण बहुव्रीहि और ( २ ) व्यधिकरण बहुव्रीहि । विशेषापेक्षया इसके सात भेद हैं- (१) द्विपद, (२) बहुपद (३) सहपूर्वपद (४) संख्योत्तरपद, (५) संख्योभयपद, (६) व्यतिहारलक्षण (७) दिगन्तराललक्षण । (१) समानिकरण बहुब्रीहि
(२) समानाधिकरण बहुव्रीहि वह है, जिसके दोनों या सभी शब्दों का समान अधिकरण हो अर्थात् वे प्रथमान्त में हों । यथा
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पीअं अंबरं अस्स सो पीआंबरो ( पीताम्बरः); आरूढो वाणरो जं रुक्खं सो = आरूढवाणरो रुक्खो ( आरूढवानरः वृक्षः); जिआणि इंदियाणि जेण सो = जिइंदियो मुणी (जितेन्द्रियः मुनिः); जिओ कामो जेण सो जिअकामो महादेवो ( जितकारा: महादेवः ) ; जिआ परीसहा जेण सो = जिअपरीसहो गोयमो ( जितपरीषहः गौतमः), भट्ठो आयरो जाओ सो = भट्ठायारो जणो (भ्राचारः जनः ); नट्ठो मोहो जाओ सो = नट्टमोहो साहू ( नष्ट मोहः साधुः ); घोरं बंभचेरं जस्स सो : घोरवंभचेरो जंबू ( घोरब्रह्मचारी - जम्बु : ); समं चउरंसं ठाणं जस्स सो समचरं संठाणो रामो (समचतुरससंस्थानः रामः); कओ अत्थो जस्स सो कत्थो को ( कृतार्थः कृष्णः ); आसा अंबरं जेसिं ते आसंबरा (दिगम्बराः);
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