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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
३९७ (६) जैन शौरसेनी में महाराष्ट्री के समान ही मध्यवर्ती व्यञ्जन का लोप होने पर अवशिष्ट अ या आ स्वर के स्थान में ही यश्रुति पायी जाती है । यथा
तित्थयरो तीर्थङ्करः- यहां क का लोप होने पर अवशिष्ट अ स्वर के स्थान में ही य श्रुति हुई है।
पयत्थर पदार्थ:-दकार का लोप और अवशिष्ट आ स्वर के स्थान में य श्रुति । वेणा < वेदना-दकार का लोप और अवशिष्ट अ के स्थान में आ को य श्रुति । आहारया आहारका-ककार का लोप और अवशिष्ट आ को य श्रुति । ( ७ ) उ के पश्चात् लुप्त वर्ण के स्थान में बहुधा व श्रुति पायी जाती है । यथाबालुवा बालुका-ककार का लोप और अवशिष्ट आ स्वर के स्थान में व श्रुति । बहुवं < बहुकं-ककार का लोप और अवशिष्ट स्वर के स्थान में व श्रुति । बिहुव < विधूत-तकार का लोप और अवशिष्ट स्वर के स्थान में व श्रुति ।
(८) जैन शौरसेनी में महाराष्ट्री के समान प्रथमा विभक्ति के एकवचन में ओ और अर्धमागधी के प्रभाव के कारण सप्तमी के एकवचन में म्मि और म्हि विभक्ति चिह्न पाये जाते हैं। षष्ठी और चतुर्थी के बहुवचन में सिं प्रत्यय जोड़ा जाता है। पञ्चमी के एकवचन में शौरसेनी के समान आदो, आदु प्रत्ययों का योग पाया जाता है।
दवसहावो< व्यस्वभाव:-प्रथमा के एकवचन में ओ प्रत्यय जोड़ा गया है । सदविसिट्ठो< सदविशिष्टः- ,
एकसमयम्हि ८ एकसमये-(प्र० सा० गा० १४२ )-सप्तमी के एकवचन में म्हि प्रत्यय जोड़ा गया है।
एगम्हि < एकस्मिन् ( प्र०सागा० १४३ )-सप्तमी के एक वचन में म्हि प्रत्यय जोड़ा गया है।
अण्णदवियम्हि < अन्यद्रव्ये (प्र० सा० गा० १९९)- , ,
सुहम्मद शुभे (प्र० सा० गा० ७९ )- सप्तमी के एकवचन में म्मि प्रत्यय जोड़ा गया है। ____ चरियम्हि ८ चरिके ( प्र० सा० गा० ७९ )-सप्तमी के एकवचन में मिह प्रत्यय जोड़ा गया है।
गम्भम्मि < गर्भे ( स्वा० का. गा० ७४ )-सप्तमी के एकवचन में म्मि प्रत्यय जोड़ा गया है।
ससरूवम्मि स्वस्वरूपे ( स्वा० का गा० ४८३ )-सप्तमी के एक वचन में म्मि प्रत्यय जोड़ा गया है। ____ जोगम्मि < योगे (स्वा० का० गा० ४८४)- ,