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अभिनव प्राकृत-व्याकरणे
४११ वेड्ढति दवर्धकि-रेफ का लोप, ध को द्वित्व और मूर्धन्य ठ, पूर्ववर्ती ढ को ड तथा क के स्थान पर त .
नेरतित र नैरयिक—ऐकार का एकार, य को त और क को त । सीमंतत दसीमंतक-क को त हुआ है। नरतातोद नरकात्-क के स्थान पर त । माडंबित <माडम्बिक-क के स्थान पर त । कोडंबित < कौटुम्बिक-औकार को ओकार, ट को ड तथा क को त । सचक्खुत्तेण< सचक्षुष्कण-क्ष के स्थान पर क्ख और क के स्थान पर त । कूणित < कूणिक-क को त। य- काइयं कायिक-मध्यवर्ती यकार का लोप और क को य । लोय < लोक-क को य हुआ है। अवयारो< भवकारो-क के स्थान पर य ।
( २ ) दो स्वरों के बीच का असंयुक्त ग प्रायः कायम रहता है। कहीं कहीं त और य भी होता है । यथा
ग-आगमआगम-ग के स्थान पर ग रह गया है। आगमणं<आगमनं-ग के स्थान पर ग और न को ग हुआ है।
अणुगामिय < अनुगामिक-ग के स्थान पर ग, न के स्थान पर ण और क के स्थान पर य हुआ है।
आगामिस्स र आगमिष्यत्- ग के स्थान पर ग, संयुक्त य का लोप और स को द्वित्व; अन्तिम हल स् का लोप ।
भगवं < भगवन्- ग के स्थान पर ग और न को अनुस्वार । त-अतित < अतिग–ग के स्थान पर त । य-सायर< सागर–ग के स्थान पर य ।
( ३ ) दो स्वरों के बीच में आनेवाले असंयुक्त च और ज के स्थान में त और य दोनों ही होते हैं। यथा
त-णारात < नाराच-न के स्थान पर ण और च के स्थान पर त । वति वचस्-अन्त्य हल स् का लोप और च के स्थान त तथा इकार । पावतण< प्रवचन-प्र के स्थान पर प और च के स्थान पर त ।
य-कयातीर कदाचित्-दकार का लोप, आ शेष और य श्रुति, च के स्थान पर य और अन्तिम व्यञ्जन त् का लोप एवं पूर्ववर्ती इ को दीर्घ ।
वायणार वाचना-च को य और क को ण।