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अभिनव प्राकृत-व्याकरण न लोगो अलोगो ( अलोकः ), न देवो = अदेवो ( अदेवः), न आयारो = अणायारो ( अनाचारः), न इ8 = अणि? ( अनिष्टम् ), न दिढ = अदिट्ठ ( अष्टष्टम् ), न अवजं = अणवजं ( अनवद्यम् ), न विरई = अविरई (अविरतिः), न सञ्चम् = असञ्चम् ( असत्यम् ), न ईसो = अणीसो ( अनीशः ), न कयं = अकयं ( अकृतम् ), न बंभणो = अबंभणो ( अब्राह्मणः )।
__ (ख) प्रादितत्पुरुष (पादितप्पुरिस) ( १ ) जब तत्पुरुष समास में प्रथमपद 'प्र-प' आदि उपसर्गों में से कोई हो तो उसे प्रादि तत्पुरुष कहते हैं। यथा
पगतो आयरियो = पायरिओ (प्राचार्यः ), उग्गओ वेलं = उज्वेलो ( उद्वेल: ), संगतो अत्थो = समत्थो ( समर्थः), अइक्कतो पल्लंक = अइपल्लंको ( अतिपल्यङ्क ), निग्गओ कासीए = निक्कासी ( निष्काशी )।
(ग) उपपद समास (१) जब तत्पुरुष समास का प्रथमपद ऐसी संज्ञा या अव्यय में हो, जिसके न रहने से शब्द का रूप ही न रह सकता हो, तो उसे उपपद तत्पुरुष कहते हैं। यथा
कुंभं करइ त्ति = कुंभआरो (कुम्भकारः), भासआरो (भाष्यकारः), सव्वण्णु ( सर्वज्ञः ), पायवो ( पादपः ), कच्छवो ( कच्छपः ), अहिवो ( अधिप:), गिहत्थो ( गृहस्थः ), सुत्तआरो ( सूत्रकारः ), वुत्तिआरो (वृत्तिकारः), निव्वया (निम्नगा), नीयगा ( नौवगा ), नम्मया ( नर्मदा), सगडब्मि ( स्वकृतभित् ), पावणासओ (पापनाशकः )।
(घ) कर्मधारय ( १ ) जब प्रथमपद विशेषण हो और दूसरा विशेष्य हो तो उसे कर्मधारय कहते हैं। इसके सात भेद हैं-(१) विशेषणपूर्वपद ( २ ) विशेष्यपूर्वपद ( ३ ) विशेषणोभ पद ( ४ ) उपमानपूर्वपद ( ५ ) उपमानोत्तरपद ( ६ ) सम्भावनापूर्वपद ( ७ ) अवधारणापूर्वपद।
(२ ) जिसमें विशेषण विशेष्य से पहले रहे, उसको विशेषणपूर्वपद कहते हैं। यथा- रत्तो अ एसो घडो = रत्तघडो ( रक्तघटः ), सुंदरा य एसा पडिमा = सुंदरपडिमा (सुन्दरप्रतिमा ), परमं एवं पयं परमपयं (परमपदम् ), पीअं तं वत्थं - पीअवत्थं ( पीतवस्त्रम् ), गोरो सो वसभो=गोवसभो ( गौरवृषभ: ), महंतो सो वीरो = महावीरो ( महावीरः), वीरो सो जिणो = वीरजिणो ( वीरजिन: ), कण्हो य सो पक्खो = कण्हपक्खो ( कृष्णपक्षः ), सुद्धो सो पक्खो = सुद्धपक्खो ( शुद्धपक्ष: )।