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अभिनव प्राकृत-व्याकरण (१९) विस्मय और निर्वेद अर्थों में शौरसेनी में हीमाणहे का निपात होता है । यथा
हीमाणहे जीवन्तवच्छा मे जणणी–विस्मय मेंहीमाणहे पलिस्सन्ता हगे एदेण नियविधिणो दुव्यवसिदेण–निर्वेद में । (२०) ननु के अर्थ में गं का निपात होता है। यथाणं अफलोदया; णं अय्यमिस्सेहिं पुढमं य्येव आणत्तं, णं भवं मे अग्गदो चलदि । (२१) शौरसेनी में हर्ष प्रकट करने के लिए अम्महे निपात का प्रयोग होतो है। यथाअम्महे एआए सुम्मिलाए सुपलिगढिदो भवं । (२२) शौरसेनी में विदूषक के हर्ण द्योतन में हीही निपात का प्रयोग होता है। यथाहीही भो संपन्ना मणोरधा पियवयस्सस्स ।
(२३) शौरसेनी में व्याप्त शब्द के त को तथा कुचित् पुत्र शब्द के त को ड होता है। यथा
बावडो व्यापृत:; पुडो , पुत्तो < पुत्रः ।
(२४) शौरसेनी में गृध्र जैसे शब्दों के प्रकार के स्थान पर इकार होता है। यथा-गिद्धोः गृध्रः- के स्थान पर इ, संयुक्त रेफ का लोप, ध को द्वित्व और पूर्ववतीं ध को द, विसर्ग को ओत्व ।
(२६) ब्राह्मण्य, विज्ञ, यज्ञ और कन्या शब्दों के ण्य, ज्ञ और न्य के स्थान में विकल्प से ज्ज आदेश होता है। यथा
बम्हजो ब्रह्मण्यः-संयुक्त रेफ का लोप, ह्य के स्थान पर म्ह और ण्य के स्थान पर ओ।
विजोर विज्ञः-ज्ञ के स्थान पर अ, विसर्ग का ओत्व । जजोर यज्ञ:–य के स्थान ज और ज्ञ के स्थान ज । कजा कन्या-न्य के स्थान पर ज । विकल्प भाव में--बम्हणो, विष्णो, जण्णो एवं कण्णा रूप होते हैं।
१. हीमाणहे विस्मय-निवेदे ८।४।२८२। २. णं नन्वर्थे ८।४।२८३ । ३. अम्महे हर्षे ८।४।८४ ।
४. हीही विदूषकस्य ८।४।२८५ । ५. व्यापते ड: १२।४ वर ।
६. पुत्रेऽपि क्वचित् १२१५ वर० । ७. इ गृधसमेषु १२।६ वर० । ८. ब्रह्मण्यविज्ञयज्ञकन्यकानां एयज्ञन्यानां जो वा १२७ वर० ।