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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
३८५ (११) शौरसेनी में भू धातु के हकार को विकल्प से भ आदेश होता है।' यथा
भोदि, होदि भवति–प्राकृत में भू के स्थान पर हो आदेश होता है; शौरसेनी में विकल्प से भू के स्थान पर भ हुआ है।
(१२) शौरसेनी में पूर्व शब्द के स्थान पर विकल्प से 'पुरव' आदेश होता है।' यथा
अपुरवं नाड्यं । अपूर्व नाट्यम्-पूर्व के स्थान पर पुरव आदेश हुआ है। अपुरवागदं, अपुवागदं <अपूर्वागतम्-,
(१३) शौरसेनी में इत और एत के पर में रहने पर अन्त्य मकार के आगे णकार का विकल्प से आगम होता है।
(१४) शौरसेनी में इदानीम् के स्थान पर दाणिं आदेश होता है। यथाअनन्तर करणीयं दाणि आणेवदु अथ्यो। प्राकृत-महाराष्ट्री प्राकृत में भी इदानीम् के स्थान पर दाणि आदेश होता है । (१५) शौरसेनी में तस्मात् के स्थान पर ता आदेश होता है। यथाता जाव पविसामि तस्मात् तावत् प्रविशामि । ता अलं एदिणा माणेण < तस्मात् अलं एतेन मानेन ।
(१६) शौरसेनी में इत् और एन के पर में रहने पर अन्त्य मकार के कार का आगम विकल्प से होता है। यथा
जुत्तं णिमं,जुत्तमिमं—इकार के पर में रहने से। सरिसं णिमं, सरिसमिमं- , , किणेदं, किमेद-एकार के पर में रहने से। एवं णेदं, एवमेदं- , " (१७) शौरसेनी में एव के अर्थ में य्येव निपात से सिद्ध होता है। यथामम य्येव बम्भणस्स; सो य्येव एसो-एव के स्थान पर य्येव ।
(१८) चेटी के आह्वान अर्थ में शौरसेनी में हजे इस निपात का प्रयोग होता है। यथा
हज्जे चदुरिके।
१. भुवो भः ८।४।२६६ ।
२. पूर्वस्य पुरवः ८।४।२७० । ३. इदानीमो दारिण ८।४।२७७ हे०। ४. तस्मात्ताः ८।४।२७८ । ५. मोन्त्यारणो वेदेतोः ८।४।२७६ । ६. एवार्थे य्येव ८।४।२८० । ७. हज्जे चेट्याह्याने ८।४।२८१। .........