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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
एकवचन
गम्म, गम< गम् (जाना) वर्तमान
बहुवचन प्र० पु० गम्मइ, गमीअइ, गमिज्जइ गम्मन्ति, गमीअन्ति, गम्मन्ते,
गमीअन्ते, गमिज्जन्ति, गमिज्जन्ते इसी प्रकार आगे रूप भी समझने चाहिए।
प्रेरणार्थक क्रिया २६. प्रेरणार्थक क्रिया-क्रिया का वह विकृत रूप है, जिससे यह बोध होता है कि क्रिया के व्यापार में कर्ता स्वतन्त्र नहीं हैं; बल्कि उसपर किसी की प्रेरणा है। साधारण धातु में जो कर्ता रहता है, वह प्रेरणार्थक में स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे से कार्य कराता है । जैसे-पढ़ता है का प्रेरणार्थक-पढ़वाता है।
(३०) प्राकृत में प्रेरणार्थक बनाने के लिए अ, ए, आव और आवे प्रत्यय जोड़े जाते हैं। (२१) अ और ए प्रत्यय के रहने पर उपान्त्य अ को आ हो जाता है। यथा
कृ-कर + अ = कार; कर् + आव = करावइ-कराता है।
कर + ए = कारे; कर + आवे = करावेइ-कराता है। ( ३२ ) मूल धातु के उपान्त्य में इ स्वर हो तो ए और उ स्वर हो तो ओ हो जाता है। यथा
विस+अ = वेस + इ = वेसइ; विस + ए = वेसे + इ = वेसेइ विस् + आव = वेसाव + इ = वेसावइ विस् + आवे = वेसावे + इ = वेसावेइ
( ३३ ) उपान्त्य दीर्घ स्वर रहने पर धातु में प्रेरणार्थक प्रत्यय जुड़ जाते हैं और उपान्त्य को एकार या ओकार नहीं होता । यथा
चूस + अ = चूस + इ = चूसइ; चूस + ए = चूसे + इ = चूसेइ चूस् + आव = चूसाव + इ = चूसावइ; चूस् + आवे = चूसावे + इ = चूसावेइ
प्रेरणार्थक क्रियाओं की रूपावलि
हस (हसाता है)-वर्तमान एकवचन
बहुवचन प्र० पु० हासइ, हासेइ, हसावइ; हासन्ति, हासेन्ति, हसावन्ति, हसावेन्ति
हसावेइ; हासए, हासेए, हासन्ते, हासेन्ते, हसावन्ते, हसावेन्ते हसावए, हसावेए हासिरे हासेइरे, हसाविरे, हसायेरे