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अभिनव प्राकृत-व्याकरण कर कार + तु. (उ) = कारिउं, कारितं, कारिदुं हस्-हास + तु (उ) = हासिउं, हासेउं, हासिदु, हासितुं शुश्रूप-सुस्सूस + तुं (उ) = सुस्सूसिउं, सुस्सेउं, सुस्सूसिदु, सुस्सूसितं चक्रम्य-चंकम + तु (उ) = चंकमिउं, चंकमेडं, चंकामिदु, चंकमित
त्तए कृ-कर - कर <त्तए = करेत्तए, करित्तए < कर्तुम् अकार को ए होने पर .
करेत्तए और इत्व होने पर करित्तए रूप बने हैं। सिझ-सिझ + त्तए = सिज्झित्तए, सिज्झेत्तए सेदूथुम् उववज्ज–उववज्ज + त्तए = उववज्जित्तए, उववज्जेत्तए < उपपत्तुम् विहर-विहर + त्तए = विहरित्तए, विहरेत्तए < विहर्तुम् पास -पास + त्तए = पासित्तए, पासेत्तए द्रष्टुम् गम्-गम + त्तए = गमित्तए < गन्तुम् । प्र + व्र-पव-पन्नज + त्तए = पव्वइत्तए, पव्वएत्तए < प्रव्रजितुम् आ + हृ-आहर--आहार + त्तए = आहारित्तए, आहारेत्तए-आहर्तुम् दा-दल-दल + त्तए = दलइत्तए, दल एत्तए < दातुम् अच्चासाद्-अच्चासाद + त्तए = अञ्चासादेत्तए < अत्याशातयितुम् समभिलोक-सम हलोक + त्त ए = समहिलोइत्तर, समहिलोएत्तए समभि
लोकयितुम् अनियमित हेत्वर्थ कृदन्त ( ५२ ) कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनमें हेत्वर्थक कृत्प्रत्यय नहीं जोड़े जाते हैं; बल्कि जिनकी सिद्धि ध्वनिपरिवर्तन के नियमों के आधार पर होती है। यथा
कृ-कृ + तं = का + तं (उ) = काउंर कतु–ककारोत्तर अ के स्थान पर आ आदेश होने से।
ग्रह + तं = घेत् + तं = घेत्तं< ग्रहीतुम्-संस्कृत की ग्रह धातु के स्थान पर घेत आदेश हुआ है और प्रत्यय का संयोग होने से घेत्तं रूप बना है।
त्वर + तुं = तुर + तुं (उ) = तुरिउं, तुरेउं त्वरितुम्-प्रत्यय के पूर्ववर्ती अकार को इत्व और एत्व होने से।
दृश् + तुं—द8 + तुं (उ) = दटुं-दृश् के स्थान पर दट्ट आदेश हुआ है। भुज् + तुं-भोत् + तुं = भोत्तं । भोत्तम् मुच् + तु = मोत् + तु = मोर मोक्तुम् रुद् + तु = रोत् + तु=रोत्तुंर रोदितुम्