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म० पु० उ० पु०
प्र०पु०
म० पु०
उ० पु०
अभिनव प्राकृत - व्याकरण
सुस्सूसि हिसि, सुस्सूसिह से सुस्सूसिस्सं, सुस्सू सिस्सामि
सुसूसिहामि
सुस्सूसिद्दित्था, सुस्सू सिहिह सुस्सूसिस्सामो, सुस्सूसिहामो सुसूसिहिमो, सुस्सू सिस्सामु
विधि एवं आज्ञार्थ
एकवचन
सुस्सूस उ
सुस्सूसहि, सुस्सूससु
सुस्सूसमु, सुस्सूसामु
सुस्सू सिमु
बहुवचन
सुस्सूसन्तु
सुस्सूलह
सुस्सूसमो, सुस्सूयामो, सुस्सूसिमो
क्रियातिपत्ति
सभी वचन और सभी पुरुषों में
सुस्सूसेज, सुस्सूसेजा, सुस्सूसन्तो, सुसुमागो
सन्नन्त -- इच्छार्थक धातुओं के कर्मणि और भावि रूप
लिच्छ<लभू - लिच्छीअइ (लिप्स्यते) झुण गुप्-झुणीअइ (जुगुप्स्यते)
बुहुक्ख < भुज् — बुहुक्खी अइ ( बुभुक्ष्यते )
यङन्त, यङ्लुगन्त और नामधातु
( ३७ ) व्यञ्जन से आरम्भ होनेवाली किसी भी एकाच् धातु के अनन्तर क्रिया को बार-बार करने अथवा क्रिया को खूब करने का बोध कराने के लिए संस्कृत में प्रत्यय लगाया जाता है । पर प्राकृत में यङन्त क्रियाएँ वर्णविकार द्वारा ही निष्पन्न होती हैं। यथा
वीआइ, पेवीए पेपीयते लालप्पइ, लालप्पए लालप्यते वरीवच्चइ, वरीवच्चए द वरीवृत्यते सासक्कइ, सासक्कए दशाशक्यते
जाजाअइ, जाजाअए जाजायते
( ३८ ) संस्कृत धातुओं में यङ् प्रत्यय का लोप हो जाने पर भी अतिशय या बार-बार अर्थ में क्रिया का प्रयोग होता है। प्राकृत में यह यङ्लुबंत या यङ्लुगन्त भी वर्णविकार द्वारा अवगत किया जाता है । यथा
चकमइचङ्क्रमति चंक्रमणं चक्रमणम्