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हू-भू-हू + अ = हूअं
हु + द = हूदं
हू + त = हूतं
अभिनव प्राकृत - व्याकरण
भूतम् — हुआ
भूतम् - हुआ
भूतम् - हुआ
प्रेरणार्थक भूतकृदन्त
( ४६ ) धातु में प्रेरणासूचक आवि और इ प्रत्यय जोड़ने के उपरान्त भूतकृत् प्रत्यय जोड़ने से प्रेरणार्थक भूतकृदन्त के रूप होते हैं। यथा
कर करावि + अ = कराविअं
करवाया
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करावि + द = कराविदं करावि + त = करावितं कर-कार + इ = कारि ( इ प्रत्यय होने पर उपान्त्य अ को दीर्घ हो जाता है ) -
कारितम् - कराया, कारितम् -कराया, करवाया कारितम् - कराया, करवाया
कारि + अ = कारिअं कारितम् कारि + द = कारिदं, कारि + त = हस् + आवि = इसावि + अ = हसाविअं त = इसावितं हासितम् - हँसाया, हँसवाया
: कारितम् - कराया, करवाया
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हसावि + द = हसाविदं हसावि +
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अनियमित भृतकृदन्त
( ४७ ) कुछ ऐसे भी भूतकालीन कृदन्त रूप मिलते हैं, जिनमें उपर्युक्त नियम लागू नहीं होता । ध्वनिपरिवर्तन के नियमों के आधार पर संस्कृत से निष्पन्न कृदन्त रूपों को प्राकृत रूप बनाया जाता है । यथा
गयं गतम् – मध्यवर्ती त का लोप हो गया है, और अवशेष स्वर के स्थान पर श्रुति हुई है।
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मयं मतम् —,,
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कडं ८ कृतम् – ककारोत्तर ऋ के स्थान पर अ और त के स्थान पर 'प्रत्यादौ डः" (८/१/२०६ ) सूत्र से ड हुआ है ।
हडं हृतम् — हकारोत्तर ऋकार को अ और त के स्थान पर ड ।
मड दमृतम् — मकारोत्तर ऋकार को अ और त को ड हुआ है । जिअंजितम् - मध्यवर्ती तकार का लोप और अ स्वर शेष । तप्तं तप्तम् — संयुक्त प् का लोप और त को द्वित्व |
कथं कृतम् – विकल्प से मध्यवर्तीत का लोप होने से अ स्वर शेष और अ को श्रुति ।
दट्ठ दृष्टम् — संयुक्त ष का लोप और ट को द्वित्व तथा ट को ठ; दकारोत्तर ऋ
को अ ।