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प्र० पु०
म० पु०
उ० पु० पित्रासमु
धातु
एकवचन
सभी पुरुष और सभी वचनों में
जुगुच्छ <गुप्
अभिनव प्राकृत - व्याकरण
विधि एवं आज्ञार्थ
कार, करावि हो, होआविभू
लिच्छ दलभू
पिवासउ
पिवासहि, पिवाससु, पिवासेज्ज, पिवासेज्जहि, पिवासह पिवासेज्जे, पिवास
पिवासामु पिवासि
बहुवचन
ने, आदिनी नेईअइ सी
नेविस का, आविध्यै झाईअड्
पिवासन्तु
पिवासेज, पिवासेज्जा, पिवासन्तो, पिवासमाणो
क्रियातिपत्ति
वर्तमान भूत भविष्यत्
पिवासमो
पिवासामो, पिवासिमो
विधि एवं क्रियातिपत्ति
आज्ञा
कारीअउ
हो
कारी अइ काईअ कारिfes होईअइ होसी होfes होआवीअइ होआविसी होआविहिइ होआवोअउ होआविज fes अउ नेज्ज नेआविसी नेआविदिर्इ नेआविअउ नेआविज्ज असी माहि भाईअड भाज्ज काआवीअइ काआविअसी झाआविहिद झाआवीअउ झाआविज जुगुच्छइ जुगुच्छीअ जुगुच्छिहिइ जुगुच्छउ गुच्छे जुगुच्छावइ जुगुच्छावीअ जुगुच्छाविहिइ जुगुच्छावेउ जुगुच्छावेज लिच्छइ बिच्छीअ लिच्छिeिs लिच्छउ लिच्टेज लिच्छवइ लिच्छावीअ लिच्छविहिर सिच्छावड लिच्छावेज्ज
काज
होज
सन्नन्त क्रिया
( ३६ ) किसी कार्य के करने की इच्छा का अर्थ बतलाने के लिए संस्कृत में धातु से सन् प्रत्यय जोड़ा जाता है । पर प्राकृत में सन्नन्त प्रक्रिया के बनाने के कोई विशेष नियम नहीं हैं । मात्र ध्वनिपरिवर्तन के आधार पर ही इस प्रक्रिया के रूप बनते हैं । यहां कुछ क्रियारूप उदाहरणार्थ प्रस्तुत किये जाते हैं ।