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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
२४९ (३) जिसमें विशेष्य विशेषण से पूर्व रहे, उसे विशेष्य पूर्वपद कहते हैं। यथा-वीरो अ एसो जिणिंदो = वीरजिणिंदो ( वीरजिनेन्द्रः ), महंतो च सो रायो = महारायो ( महाराज: ), कुमारी अ सा समणा = कुमारीसमणा, कुमारसमणा ( कुमारीश्रमण ), कुमारी अ सा गम्भिणी - कुमारगब्भिणी ( कुमारगर्भिणी)।
( ४ ) जिसके दोनों पद विशेषगवाचक हों, वह विशेषणोभयपद कहलाता है। यथा
__रत्तो अ एस सेओ = रत्तसेओ आसो ( रक्तश्चेतोऽश्व: ), सीअं च तं उण्हं य= सीउण्हं जलं (शीतोष्णं जलम् ), रत्तं अतं पीअं य = रत्तपीअं वत्थं ( रक्तपीतं वस्त्रम् )।
(५) उपमानवाचक शब्द जिसके पूर्वपद में रहे, वह उपमानपूर्वपद कहलाता है । यथा
चंदो इव मुहं = चन्दमुहं ( चन्द्रमुखम् ), घणो इव सामो = घणसामो (घनश्यामः ), वज्जो इव देहो =वजदेहो ( वज्रदेहः ), चन्दो इव आणणं = चंदाणणं ( चन्द्राननम् )।
(६) उपमानवाचक शब्द जिसके उत्तरपद में हो, उसे उपमानोत्तरपद कहते हैं। यथा
मुहं चंदो व = मुहचंदो ( मुखचन्द्रः ), जिणो चंदो व्व =जिणचंदो (जिनचन्द्रः )।
(७) जिसमें सम्भावना पायी जाय ऐसा विशेषण अपने विशेष्य के साथ समास को प्राप्त करता है और इस प्रकार के समास को सम्भावनापूर्वपद समास कहते हैं । यथा
संजमो एव धणं = संजमधणं (संयमधनम् ), तवो चिअ धणं = तवोधणं (तपोधनम् ), पुण्णं चेअ पाहेज़ = पुण्णपाहेजं ( पूर्णपाथेयम् )।
(८ ) जिसमें अवधारणा पायी जाय ऐसा विशेषण पद भी अपने विशेष्य पद के साथ समस्त हो जाता है । यथा
अन्नाणं चेत्र तिमिरं = अन्नाणतिमिरं ( अज्ञानतिमिरम् ), नाणं चेअ धणं = नाणधणं ( ज्ञानधनम् ), पयमेव पउमं = पयपउमं ( पादपद्मम् )।
द्विगु (दिगु) (१) जिस तत्पुरुष के संख्यावाचक शब्द पूर्वपद में हों, वह द्विगु समास कहलाता है। द्विगु समास दो प्रकार का होता है-(१) एकवद्भावी और ( २ ) अनेकवद्भावी।