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अभिनव प्राकृत व्याकरण ( २ ) सर्वाङ्ग शब्द से विहित इन के स्थान में इक आदेश होता है । यथासव्वंग + इअ = सव्वंगिओ ( सर्वाङ्गीण:)
( २८ ) पर और राजन् शब्द से सम्बन्ध बतलाने के लिए क्क प्रत्यय होता है । यथा
पर + क = परक्कं ( परकीयम् ) राय + क = राइक्कं ( राजकीयम् ) .
(२९) संस्कृत तद्धितान्त रूपों के ऊपर से प्राकृत के रूप बनाये जाते हैं। यथाधनिन् = धनी-धणी
कानीनः = काणीणो आर्थिकः = अस्थिओ
मदीयम् = मईयं तपस्विन् = तपस्वी = तवस्सी पीनता = पीणया भैक्षम् = भिक्खं
राजन्यः = रायण्णो आस्तिक:: = अस्थिओ
कोशेयम् = कोसेयं आर्षम् = आरिसं
. पितामहो = पिआमहो यदा = जया; कदा = कया, सर्वदा = सव्वया, तदा = तया, अन्यदा = अण्णहा; सर्वथा = सव्वहा।
तर और तम प्रत्यय प्राकृत में एक से श्रेष्ठ और सबसे श्रेष्ठ का भाव बतलाने के लिए तर (अर), तम (अम), ईयस् (ईअस) और इष्ठ (इट) का प्रयोग संस्कृत के समान ही होता है। इन तुलनात्मक विशेषणों की (Degree of Comparison) की तालिका दी जाती है।
तिक्ख (तीक्ष्ण) तिक्खअर (तक्ष्णतर) तिक्खअम (तीक्ष्णतम) उज्जल (उज्वल) उज्जलअर (उज्ज्वलतर) उजलअम (उज्ज्वलतम) परगहिय (प्रगृहीत) परगहियअर (प्रगृहीततर) पग्गहियतम (प्रगृहीततम) थोव (स्तोक) थोवअर (स्तोकतर) थोवअम (स्तोकतम) अप्प (अल्प) अप्पअर (अल्पतर) - अप्पअम (अल्पतम) अहिअ (अधिक) अहिअअर, अहिअदर अहिअअम, अहिअयम
(अधिकतर) (अधिकतम) पिअ (प्रिय) पिअअर (प्रियतर) पिअअम (प्रियतम) हलु, लहु (लघु) हलुअर (लघुतर)-----हलुअम (लघुतम)
१. सर्वाङ्गादीनस्येकः ८।२।१५१ ....... २. पर-राजभ्यां क-डिकौ च ८.२।१४८