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सातवाँ अध्याय
अव्यय और निपात ऐसे शब्द, जिनके रूप में कोई विकार–परिवर्तन उत्पन्न न हो और जो सदा एकसे-सभी विभक्ति, सभी वचन और सभी लिङ्गों में एक समान रहें, अव्यय कहलाते हैं। - अव्यय शब्द का शाब्दिक अर्थ है कि लिङ्ग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में व्यय-घटती-बढ़ती न हो; वह अव्यय है।'
अव्यय पांच प्रकार के होते हैं-(१) उपसर्ग (२) क्रिया विशेषग (३) समुच्चयादि बोधक ( Conjunctions ), (४) मनोविकारसूचक ( Interjections ) और (६) अतिरिक्त अव्यय ।
उपसर्ग (उवसग्ग) जो अव्यय क्रिया के पूर्व आते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं। उपसर्ग लगाने से क्रिया के अर्थ में परिवर्तन या वैशिष्ट्य आ जाता है। उपसर्ग की स्थिति तीन प्रकार की होती है।
(१) कोई उपसर्ग धातु के मुख्यार्थ को बाधकर नवीन अर्थ का बोध कराता है; (२) कोई धात्वर्थ का ही अनुवर्तन करता है और (३) कोई विशेषग होकर उसी धात्वर्थ को ओर भी स्पष्ट कर देता है । यथा—हरइ ले जाता है; अवहरइ (अपहरति)-चुराता है, अगुहरइ (अनुहरति)-नकल करता है, परिहरइ (परिहरति)छोड़ता है, आहरइ (आहरति)-लाता है, पहरइ (प्रहरति)-मारता है, विहरइ (विहरति)-विहार करता है, उवहरइ (उपहरति)-उपहार देता है , आदि ।
१. स्वरादिनिपातमव्ययम्-स्वरादि और निपात की अव्यय संज्ञा है।-१-१-३७ पा०
सदृशं त्रिषु लिङ्गेसु सर्वाषु च विभक्तिषु । वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम् ॥-सि० कौ० अव्यय प्रकरण २. धात्वार्थ बाधते कश्चित्कश्चित्तमनुवर्तते ।
विशिनाष्ट तमेवाऽर्थमुपसर्गगतिस्त्रिधा ।।.. ३. उपसर्गेण धात्वर्थों बलादन्यत्र नीयते ।
प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत् ।।-स्नातकसंस्कृतव्याकरणम् पृ० १२१ .