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चौथा अध्याय
वर्ण- परिवर्तन
वर्ण विकृति अध्याय में वर्ण परिवर्तन (स्वर और व्यंजनों का परिवर्तन) दिखलाया गया है, पर वह इतना वैयक्तिक और शास्त्रीय है, जिससे प्राकृतभाषा की शब्दावली को अवगत करने में जिज्ञासुओं को आयास करना होगा। अतः इस अध्याय में सरलतापूर्वक ध्वनि परिवर्तन के नियमों का सोदाहरण विवेचन किया जायगा । तथ्य यह है कि संस्कृत ध्वनियों में परिवर्तन कर प्राकृत शब्द गढ़े जाते हैं । अतः प्राकृत भाषा के वैयाकरणों ने प्राकृत की शब्दावली संस्कृत को प्रकृति - मूल शब्द मानकर सिद्ध की है ।
स्वर-परिवर्तन
( १ ) संस्कृत की अध्वनि प्राकृत में आ, इ, ई, उ, ए, ओ, अइ और आइ में परिवर्तित हो जाती है। उदाहरण
( क ) अ = आ - संस्कृत की अ ध्वनि का विकल्प से आ में परिवर्तन 1
आहिआई, अहिआई द अभियाति — अ को विकल्प से दीर्घ, मध्य और अन्स्य य तथा त का लोप, अ और ह स्वर शेष, दीर्घ ।
आफंसो, अफंसो अस्पर्शः - अ को विकल्प से दीर्घं, संयुक्त स का लोप, प को फ, संयुक्त रेफ का लोप, तालव्य श को दन्त्य स, विसर्ग को ओत्व |
चाउरंतं, चउरंतं चतुरन्तम् - चकारोत्तर अ को दीर्घ, त लोप, उ शेष । दाहिणो, दक्खिणो दक्षिणः - दकारोत्तर अ को विकल्प से दीर्घ क्ष को विकल्प से ह, विकल्पाभावपक्ष में क्ख ।
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पारकेरं, परकेरं परकीयम् पकारोत्तर अ को विकल्प से दीर्घ, कीयं के स्थान पर केरं ।
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पारक्कं परक्कं < परकीयम् - पकारोत्तर अ को विकल्प से दीर्घ, कीर्यं कोकं ।
पुणा, पुण<पुन:
कोण एवं विकल्प से दीर्घ ।
पायडं पयडं 4 प्रकटम् - प्र के संयुक्त र का लोप, पकारोत्तर अ को विकल्प सेदीर्घ, क लोप, अस्वर और य श्रुति, द कोड +
पाडवआ, पडिव प्रतिपत् — प्र के संयुक्त र का लोप, पकारोत्तर अ को विकल्प से दीर्घ, पकाव और तू का आ ।