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पाँचवाँ अध्याय
लिंगानुशासन प्राकृत में संस्कृत के समान पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग ये तीन ही लिङ्ग माने गये हैं । प्राणिवाचक और अप्राणिवाचक समस्त संज्ञाएँ उक्त तीनों लिङ्गों में विभक्त हैं। साधारण लिङ्गव्यवस्था संस्कृत के समान ही है, किन्तु जिन शब्दों में अन्तर है, उन्हींका यहां निर्देश किया जाता है।
(१) प्रावृष , शरद् और तरणि शब्दों का पुल्लिंग में प्रयोग होता है । यथापाउसो< प्रावृष-संस्कृत में यह शब्द स्त्रीलिंग है। सरओ< शरदू- ". " तरणी<तरणी
( २ ) दामन्, शिरस् और नभस को छोड़ कर शेष सकारान्त तथा नकारान्त शब्द पुल्लिंग में प्रयुक्त होते हैं। (क) सकारान्त शब्द
जसो यशस्-यश:-संस्कृत में यह शब्द नपुंसकलिंग है। पओ< पयस्-पय:तमो<तमस्-तमःतेओ< तेजस-तेज:
सरो< सरस्-सरः( ख ) नकारान्त शब्द
जम्मो<जन्मन्-जन्मनम्मो < नर्मन्-नर्मकम्मोद कर्मन्-कर्मवम्मो< वर्मन्-वर्मविशेष(क) वयं वयस्-वयः-संस्कृत में यह नपुंसकलिंग है और प्राकृत में भी इसे नपुंसकलिंग ही माना गया है।
१. प्रावृटशरत्तरणयः पुंसि-८।१।३१. है । २. स्नमदाम-शिरो-नमः-८१६३२. है ।