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अभिनव प्राकृत व्याकरण
( ८ ) संस्कृत के अजातिवाचक पुलिङ्ग शब्दों से प्राकृत में स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ई प्रत्यय होता है । यथा
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नीली — नीला; काली — काला इसमाणी - इसमाणा, सुवणही - सुप्पणहा; इमीए - इमाए; इमीणं – इमाणं, एईए – एआए, एई – एआणं ।
( C ) संस्कृत के छाया और हरिद्रा शब्दों को प्राकृत में स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए विकल्प से है प्रत्यय जुड़ता है । यथा
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छाही - छाया; हलद्दी - हलद्दा |
( १० ) सु, अम् और आम्, सुप् (सभी विभक्तियों) के पर में रहने पर किम्, यद् और तद् शब्दों से प्राकृत में स्त्रीलिङ्ग में ई प्रत्यय विकल्प से होता है। * यथा
कीओ -- काओ; कीए - काए; कीलु — कासु; जीओ – जाओ; तीओ - ताओ ।
( ११ ) पुल्लिंग शब्द जो नर का द्योतक है, उससे स्त्रीलिंग बनाने के लिए ई प्रत्यय जोड़ा जाता है । पर पालकान्त शब्दों में ई प्रत्यय नहीं जुड़ता है । बंभणस्सा जाया बंभणी, सुद्दस्स जाया सुद्दी, गणअस्स जाया गणई, णाविअस्स जाया णाविई, सिाअस्स जाया णिसाई ।
( १२ ) संस्कृत के जानपद, कुण्ड, गोण, स्थल, भाग, नाग, कुश, कामुक आदि - शब्दों से प्राकृत में स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ई प्रत्यय जोड़ा जाता है। ई प्रत्यय के अभाव में आ होता है । यथा
जाणवद + ई - जाणवदी; कुंडी-कुंडा, थली-थला, गोणा - गोणी, भागा - भागी, कुसी – कुसा |
मातुल
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( १३ ) संस्कृत के इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, मृड, आचार्य, हिम, अरण्य, यवन, और उपाध्याय शब्दों से प्राकृत में ई लगने के पूर्व आण जोड़ दिया जाता हैइंद + ई = इंदाणी; भव + ई = भवाणी; सव्व + ई = सव्वाणी, रुद्राणी, मिडाणी, आयरियाणी, जवणाणी, माउलाणी, उवज्झायाणी ।
(१४) धर्मविधि से पाणिग्रहण (विवाह) अर्थ प्रकट हो तो संस्कृत के पाणिग्रहण शब्द से प्राकृत में ई प्रत्यय होता है । यथा
पाणिगहीदी - धर्मविधिपूर्वक विवाह की गयी पत्नी । पाणिगहीदा - अन्य किसी प्रकार से विवाह की गयी पत्नी ।
१. प्रजातेः पुंसः ८।१।३२.
३. किं यत्तदोस्यमामि ८ | ३ | ३३.
२. छाया - हरिद्रयोः ८।३।३४.