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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
अञ्जल्यादिगण के शब्द -
एसा अंजली (स्त्री), एसो अंजली ( पु० ) ८ एष अञ्जलिः ।
चोरिआ (स्त्री० ). चोरिओ ( पु० ) ८८ चौर्यम् ।
निही (स्त्री), निही (पु० ) < निधिः ।
विधिः ।
विही (स्त्री० ), विही (पु० ) गंठी (स्त्री० ), गंठी (पु० ) रस्सी स्त्री०), रस्सी ( पु०
)
एसा बाहा (
ग्रन्थिः ।
रश्मिः ।
( ७ ) जब बाहु शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है, तब उसके उकार के स्थान में आकार होता है । पर जब पुल्लिंग में प्रयुक्त होता है तब आकार आदेश न होकर बाहु रूप ही रह जाता है । यथा
स्त्री एसो बाहू (पु० ) एष बाहुः ।
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स्त्रीप्रत्यय
स्त्रीलिंग शब्द दो प्रकार के होते हैं—मूल स्त्रीलिंग शब्द और प्रत्यय के योग से बने स्त्रीलिंग शब्द | जिन शब्दों का अर्थ मूल से ही स्त्रीवाचक है और रूप पुल्लिंग और नपुंसकलिंग में नहीं होते, उनको मूल स्त्रीवाचक शब्द कहते हैं। यथा-लदा, माला, छिहा, हलिद्दा, मट्टिआ, लच्छी, सप्पिणी आदि ।
प्रत्यय के योग से ने स्त्रीलिंग शब्द मूल से स्त्रीलिंग नहीं होते, किन्तु स्त्रीप्रत्यय जोड़ देने से उनमें स्त्रीत्व आता है। ऐसे शब्द जोड़ीदार होते हैं अर्थात् पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों लिंगों में व्यवहृत होते हैं । अतः स्त्रीप्रत्यय - वे प्रत्यय हैं, जिनके लगने पर पुल्लिंग शब्द स्त्रीलिङ्ग हो जाते हैं । संस्कृत में टापू, डाप्, चाप् ( आ ); ङीप, ङोष_ ङीन् ( ई ); ऊङ ( ऊ ) और ति ये आठ स्त्रीप्रत्यय हैं; पर प्राकृत में
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आई और ऊ प्रत्यय ही होते हैं । अधिकांश प्राकृत शब्दों में संस्कृत के समान ही arrar का विधान किया गया है।
( १ ) सामान्यतया प्राकृत में अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए आ प्रत्यय लगता है । यथा—
अअ + आ = अआ 4 अजा; चडअ + आ चडआ < चटका | मू|सअ + आ = मूसिया < मूषिका; बाल + आ = बाला < बाला । वच्छ + आ वच्छा <वत्सा, होड + आ = होडा ( छोकरी ) कोइल + आ = कोइला < कोकिला; चवल < चपला; कुसल < कुशला ।
१. बाहोरात् ८।१।३६, हे० ।
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